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________________ अन्धकार को दूर करो तेज (प्रकाश) का प्रसार करो। तो मेरी वस्तु ही मुझे मिलती है मेरा भाग्य मुझसे जुदा नहीं है। अपने को पामर समझने वाले हतभाग्य जीव यह नहीं समझ सकते कि, वे स्वयं क्या हैं और उनमें कितना सामर्थ्य है तथा आत्मा के अन्दर छुपी हुई शक्ति को जागृत करने और प्रमाणिक प्रयत्न करने से असाध्य को भी साध्य कैसे बनाया जाता है। . इस प्रकार अपने पर विश्वास रखने वाला कोई भी मनुष्य चाहे वह कितने भी निर्बल मन वाला क्यों न हो उपरोक्त विचारों का बार-बार मनन करने से अपनी निर्बलता को दूर कर सकता है। आत्मा में अनन्त शक्तियां भरी पड़ी हैं परन्तु उनको प्रबल विचारों के द्वारा जागृत करने की आवश्यकता है। जब बुझती हुई आग भी पंखे की पवन से जाज्वल्यमान हो सकती है तब अनन्त शक्तियों से भरपूर आत्मा प्रबल विचार बल' के प्रोत्साहन द्वारा प्रदीप्त हो जाए तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? विचार बल मुर्दा दिलों को भी जिन्दा कर देता है । जैसे ज़मीन पर पड़ी हुई गुल्ली की अरणी पर डंडे से आघात कर उसे ऊंचे उछाला जाता है और एक बार उछालने के पश्चात् उसे जोर से धक्का मारना इतना सुगम हो जाता है कि दूसरे टल्ले से वह बहुत दूर चली जाती है वैसे ही मनुष्यों को एक बार विचार बल की सहायता देकर ऊंचे उठाना चाहिए। थोड़ा-सा ऊंचे उठने पर वे अपने आप ही आगे बढ़ जाएंगे अथवा थोड़े से सहारे से ही वे उन्नत हो जाएंगे। __ जो विचार बल द्वारा अपनी निर्बलता कम करना चाहते हैं वे अश्वमेव इसका मनन करें। रूपस्थ ध्यान-मानसी पूजा . . नीचे लिखे स्वरूप वाले शरीर धारी तीर्थंकर प्रभु का ध्यान-रूपस्थध्यान है। मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त करने की तैयारी है, जिन्होंने समग्र कर्मों का नाश किया है, देशना (धर्मोपदेश) देते समय देवताओं द्वारा निर्मित तीन बिम्बों से चार मुख सहित है, तीन भुवन के सर्व प्राणियों को अभयदान दे रहे हैं, अर्थात् किसी भी प्राणी की हिंसा न करने का उपदेश देने वाले, चन्द्र मंडल सदृश्य उज्ज्वल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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