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________________ मुझे मित्र की आंख से देखिए। होगा तो मेरे प्रयत्न भी ढीले ही होंगे। मैं अपने भाग्य की अपेक्षा महान् है भाग्य को मैंने ही बनाया है। बाहर की किसी भी शक्ति की अपेक्षा मेरी आत्मा में अनेक गुणी अधिक शक्ति है । इस बात को यदि मैं न समझूगा तो मेरे द्वारा कोई भी महत्त्व का कार्य न होगा। यद्यपि यह आत्म-श्रद्धा कोई मेरा अहंकार नहीं है, परन्तु ज्ञान है, तथापि, वह अहंकार के रूप में परिवर्तन न हो जाए, इसकी सावधानी रखते हए मैं निर्मल श्रद्धा बढ़ाता जाता हैं। प्रतीति में से श्रद्धा का जन्म होता है । मेरी सब प्रकार की उन्नति का आधार मेरी आत्म-श्रद्धा पर ही अवलम्बित है । एक कहता है कि- "संम्भवतः मैं यह कार्य कर सकूँगा अथवा करने का प्रयत्न करूंगा।" दूसरा कहता है कि-"यह कार्य में अवश्य ही करूंगा और करूंगा ही। इन दोनों की आत्मश्रद्धा में महान् अन्तर है पहिले के विचार निर्बल और श्रद्धाहीन हैं तथा दूसरे के विचारों में प्रबलता और शक्ति की दृढ़ता है। इन दूसरे विचारों वाला वीर पुरुष ही प्रारम्भ किए .. हुए कार्यों को पूरा कर सकता है। मैं कार्य को सिद्ध करने के लिए प्रचण्ड बल के साथ कार्य आरम्भ करूंगा और बीच में जो विघ्न बाधाएं आवेंगी उन्हें नष्ट करने की शक्ति प्राप्त करता जाऊंगा। कोई भी विघ्न पूरा बल' लगाये और सतत प्रयत्न किये बिना नहीं हट सकता। डगू-पचू, शंकाशील , और अस्थिर मन से प्रबल कार्य हो ही नहीं सकते । चाहे सारा जगत भी एक वक्त मेरे कार्य से विरुद्ध क्यों न हो जाए तो भी मैं अपने प्रारम्भ किये हुए कार्य को अपनी आत्मश्रद्धा से जरूर पूरा कर डालूंगा। क्योंकि मायावी जगत और आत्मबल इन दोनों में महान अन्तर है। यदि मैं यह मान लूं कि अमुक कार्य करना मेरी शक्ति से बाहर है तो जगत में ऐसी कोई भी शक्ति नहीं है जो इस कार्य को सिद्ध करने में मुझे सहायक हो सके । आत्म-विश्वास और महान् पुरुषार्थ किये बिना एक भी कार्य पूरा नहीं होता। आत्मा में एक ऐसी शक्ति है कि जो तीव्र-इच्छा और प्रबल-पुरुषार्थ करने से सर्व कार्य सिद्ध कर सकती है। यह शक्ति सब वस्तुओं को अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है। वास्तव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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