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________________ मौंद थोडील,बर पाये का पाकर कारें, दूसरों को घर का मेदन है। जीता हैं कि ध्यान में विघ्न करने वाले, भयंकर सिंह, हाथी, राम मौर दूसरे भी भूत-प्रेत सर्पादि तत्काल शांत हो जाते हैं। १५-ॐ नमो अरिहंताणं-इस मंत्र का जाप इस लोक सम्बन्धि फल चाहने वाले को ॐ सहित करना और मोक्षाभिलाषी को ॐकार के बिना जाप करना चाहिये। १६-कर्म प्रोध की शांति के लिए जापमंत्र-श्रीभद् ऋषभादि वर्धमानांतेभ्यो नमः । कर्म के नाश के लिए सदा इसका जाप करें। . १७–सर्व जीवों के उपकार के लिए पाप भक्षिणी विद्याविद्या-ॐ अर्हन मुख-कमल-वासिनि पापात्मक्षयंकरि, श्रतज्ञानज्वाला सहस्र ज्वलिते, सरस्वति मत्पापं हन्-हन् दह-दह क्षां क्षीं क्षं झै क्षौं क्षः क्षीरधवले अमृत संभवे वं-वं हूं हूँ स्वाहा । (यह पाप भक्षिणी विद्या है, इस का नित्य स्मरण करें)। इस विद्या के प्रभाविक अतिशय से मन तत्काल प्रसन्न होता है, पाप की कलुषता दूर होती है तथा ज्ञान-दीपक प्रकाशित होता है (ज्ञान प्रकट होता है)। १६-सिद्धचक्र के स्मरण करने की विधिविद्या प्रवाद से उद्धार करके वज्रस्वामि आदि ज्ञानी पुरुषों ने प्रकट रूप से मोक्ष लक्ष्मी के बीज समान माना हुआ तथा जन्म मरणादि दावानल को प्रशांत करने में नवीन मेघ के समान सिद्धचक्र को गुरु के उपदेश से जानकर कर्म क्षय के लिये चिंतन करें। विधि-नाभि कमल' में स्थित सर्व व्यापि "अ" कार का चिंतन करें। मस्तक पर "सि" वर्ण का, मुख कमल में "आ" कार का, हृदय कमल में में "उ' कार का, तथा कंठ में “सा' कार का चिंतन करें। १-सिद्धचक्र के चिंतन में यहां पर पंच परमेष्ठियों के आदि के अक्षरों की कल्पना करके चिंतन करने के लिए लिखा है; जैसे कि-१-अरिहंत पद का-अ; २–सिद्ध पद का-सि; आचार्य पद का-आ; उपाध्याय पद का-उ; साधु पद का-सा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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