________________
Sayings of lord sehatira प्रभु महावीर की अमृतवाणी जो पाप से दूर रहतावह मानी है।
[4]
श्री वीतरागाय नमः श्री स्वरोदय-सार (सविवेचन)
(चिदानन्द जी कृत) अर्थ-विवेचन मादि कर्ता-पं० हीरालाल दूगड़
मंगलाचरण (तीर्थकर वन्दना) (छप्पय) नमो आदि अरिहंत देव, देवनपति राया।
जास चरण अवलम्ब, गणाधिप गुण निज पाया । धनुष पांचशत मान, सप्त कर परिमित काया । ऋषभादि अरु अन्त, मृगाधिप चरण सुहाया ॥ आदि अन्त युत मध्य, जिन चौबीस इम ध्याइये। ..
चिदानन्द तस ध्यान थी, अविचल लीला पाइये ॥१॥ अर्थ-जो देवों के स्वामी-इन्द्रों के भी पूज्य हैं तथा जिनके चरण-कमलों के अवलम्बन मात्र से गणधर देवों ने भी अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर अनन्त गुणों को प्राप्त किया है ऐसे अरिहंत देवों को मैं सर्वप्रथम नमस्कार करता हूं। __पांच सौ धनुष शरीर वाले प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव तथा जिनके चरणों में सिंह का चिन्ह सुशोभित है और सात हाथ लम्बा जिनका शरीर है ऐसे मन्तिम (चौबीसवें) तीर्थंकर श्री वर्धमान (महावीर) स्वामी-एवं इन आदि और अन्तिम तीर्थकरों के मध्यवर्ती श्री अजितनाथ से श्री पार्श्वनाथ तक बाईस
तीर्थंकरों को मिलाकर कुल चौबीस तीर्थंकरों का ध्यान करता हूं। हे चिदानंद ! . इनके ध्यान से शाश्वत सुख अर्थात् मोक्ष रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । १
सरस्वती वन्दना (छप्पय) ' इक कर वीणा धरत, इक कर पुस्तक छाजे ।
चन्द वदन सुकमाल, भाल जस तिलक विराजे ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org