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________________ सूर्य मस्त होने के बाद भोजन न करें, पानी छान कर पीयें। हज़ारों पापों को करने वाले सैकड़ों प्राणियों की हत्या करने वाले जानर भी इस महामंत्र की आराधना से देवलोक में गये हैं । प्रकारांतर से पंचपरमेष्ठि विद्या १ – पंच परमेष्ठि से उत्पन्न सोलह अक्षरों की विद्या को दो सौ बार जपने से एक उपवास का फल होता है । विद्या --- अरिहंत - सिद्ध-आयरिय उवज्झाय- साहू | ३ – छः अक्षरों वाली विद्या तीन सौ बार ; ४ - चार अक्षरों वाली विद्या चार सौ बार ; ५ – पांच अक्षरों वाली विद्या पांच सौ बार जपने से एक उपवास का फल होता है । छः अक्षरी विद्या - अरिहंत सिद्ध । चार अक्षरी विद्या - अरिहंत । पांच अक्षर विद्या -- सि-प्रा-उ-सा | इन विद्याओं के जाप का फल जो एक उपवास का बतलाया है; यह तो बाल जीवों को जाप में प्रवृत्ति के लिये है । पर परमार्थ से वास्तविक फल तो स्वर्ग और मोक्ष है । ऐसा ज्ञानी पुरुषों ने कहा है । ६ – सिद्धान्त से उद्धार की हुई पांच वर्ण वाली, पांच तत्त्व विद्या का यदि प्रतिदिन जाप किया जावे तो सब क्लेशों को दूर करती है— असि श्रा-उ-सा नमः । विद्या - ७ - नीचे लिखी विद्या का यदि एकाग्र चित्त से स्मरण किया जावे तो मोक्ष की प्राप्ति हो । विद्या --- अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवली पन्नत्तो धम्मो मंगलं । अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवल पन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमा । अरिहंते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि, केवल पन्नतं धम्मं सरणं पवज्जामि । ८ - पन्द्रह अक्षरों की विद्या का ध्यान - यह मोक्ष सुख को देने वाली विद्या है । तथा सर्व ज्ञान प्रकाशक सर्वज्ञ सदृश मंत्र का भी स्मरण करें । विद्या - ॐ अरिहंत सिद्ध सयोगि केवल स्वाहा । मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं अर्हं नमः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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