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________________ हमा बुद्धि और धन शान्ति के लिए हों। मा. महात्मा भाग्य से किसी को मिल जाये, तो आश्चर्य नहीं। संयोकि प्रायः करके यह बात कितने ही मनुष्यों को हुई है, परन्तु जिनको ऐसे महात्माओं का समागम हुआ है, वे पुरुष ऊपर लिखे महात्माओं को न बतावेंगे, क्योंकि यह बात अनुमान से सिद्ध होती है कि कबीर आदि अनेक पुरुषों ने जिनको गुरु किया था, उनके समीप तो उनको मिल गया, और आत्मा की लटक बता गया । उस लटके से उन्होंने पहले गुरु से पृथक् अपने नाम का पंथ चलाया, साखी आदि दोहा कवित्त कह कर ग्रन्थ भी बनाया। .. मैंने भी राजगृही के पर्वत पर रात्रि के समय एक महात्मा का दर्शन पाया था उन्होंने मुझे उपदेश सुनाया और कई तरह के संदेह को मिटाया, उन्होंने मेरे चित्त के संदेह को ऐसा मिटाया फिर मुझे किसी तरह का विकल्प न. आया । ऊपर लिखे योगी महात्माओं को भी मैने शरीर सहित होने का प्रश्न पूछा उत्तर में उनके न होने का अनुभव कराया, उसी ही अनुभव से मैंने भी पाठकगण को समझाने के वास्ते लिखा है। दूसरी बात यह है कि जो शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि जितनी आयु लिखी है, उसमें कमी-बेशी करने को कोई समर्थ नहीं है और यह बात लोक में प्रसिद्ध भी है कि विधाता के लेख को कोई नहीं मिटा सकता । तब जो समाधि बाला अपने समाधि से अधिक आयु कर लेगा तो विधाता से भी अधिक विधाता हो जायेगा, विधाता का लेख सब खो जायेगा। ___इसलिए समाधि लगाने वाले शरीर से अमर नहीं होते। किन्तु उस दशा में जीव शरीर छोड़कर सिद्धावस्था में अमर हो जायेगा, अपनी आत्मा में से मोह भगा जायेगा, जन्ममरण को खो जायेगा, तिरोभाव से आविर्भाव हो जायेगा। इसलिए समाधि वाला शरीर सहित कभी अमर न होगा। तीसरी बात जो कि स्वरोदय में लिखी है, वह यह है कि : "चार समाधि-लीन नर, षट् शुभ ध्यान मंझार । तूष्णीभाव बेठा जु दस, बोलत द्वादश धार ।।४१२।। चालत सोलस सोवतां, चलत श्वास बावीस । नारी भोगवतां जानजो, घटत श्वास छत्तीस ॥"४१३॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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