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________________ जीव से रहित शरीर ही मरता है, जीमहाही मरता। मेरे द्वारा कृत स्वरोदय में ये ऊपर लिखे दोनों दोहे हैं । यो ग्रन्थों में तो विशेष श्वासों का जाना कहा है । अब हम इस जगह पर विचार करते हैं, कि जब इस रीति से स्वरोदय वाले कहते हैं तो वे फिर आयु क्यों नहीं बढ़ा लेते यह निश्चय न हुआ। हे समाधि वालो ! भला समाधि में तुम अपनी आयु बढ़ा लेते हो, तो हम को तो बतायो कि रास्ता चलने में अथवा सोने में अथवा स्त्री के भोग आदि में और भागने में जो विशेष श्वास घटता है तो क्यों ? ७२० श्वास एक मूहर्त के कहे हैं, सो इस नासिका की रीति से गिनाए हैं, अथवा किसी और जगह से शरीर में गिनाए हैं ? तो सब लोग ऐसा ही कहते हैं कि नासिका के गिनाए तब हम इस स्थान पर पाठकगण को एक अनुभव कराते हैं, उस अनुभव को बुद्धिपूर्वक विचार करके अपने चित्त में अनुभव करना और अनुभव करके जो वर्तमान काल के योगी बने फिरते हैं, उनको पूछने से उनके भेद खुल जावेंगे, जाल सब दूर हो जावेंगे, शेखी करने से हट जावेंगे। वह अनुभव इस रीति से है कि जिस समय मनुष्य साधारण स्वभाव से * बैठा है, उस समय श्वास जल्दी बाहर से भीतर को जाता है और शीघ्र ही बाहर को चला आता है और जब जोर का काम पड़े, अथवा स्त्री-भोग अथवा भागना आदि क्रियाओं के करने से श्वास देरी में बाहर से भीतर जाता है और भीतर से बाहर आता है, इस अनुभव को जिसकी इच्छा हो, वह करके देखे, तो जो काम देरी से होगा वह काम अधिक रहेगा। इस रीति से जो विषयादि करने वाले, अथवा भागने वाले, अथवा सोने वाले हैं, इनकी आयु अधिक होनी चाहिए ? यदि इस जगह गुरु सेवा के बिना मात्र पुस्तकें पढ़कर बुद्धि-विचक्ष्णता वाले और न्याय-व्याकरणादि पढ़ने वाले ऐसा कहें कि उन भागना और विषयादि क्रियाओं में श्वास तो यही है, परन्तु अंगुलों की गणना से श्वासादिक की हवा दूर जाती है, इसलिए आयुकर्म टूटता है। इस रीति से नासिका के ही श्वास जानो । इस जगह हमारा यह कथन है कि जब अंगुलों के ऊपर संख्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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