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________________ -- एक दूसरे के साथ प्रमपूर्वक मधुर संभाषण करो। और बाहपवन उसके रोम की नाड़ियों द्वारा पहुंचने लगे तब उसको चेतना होती है और जो साधक लोग पास में हैं, वे भी उपचार करते हैं, जिससे बहुत सावधान होकर बात-चीत करने लगता है। _ क्योंकि जिस समय में जो पुरुष जड़ समाधि लगाता है, उस समय श्रोत्र, चक्षु, नासिका' और मुखादि सर्व द्वारों को रूई आदि लगाकर ऊपर से मोम लगाया जाता है। फिर उस समाधि वाले पुरुष को चाहें तो किसी स्थानादि व सन्दूकादि में बन्द करके रख दो, अथवा पृथ्वी में गाड़ दो, जितने दिन की प्रतिज्ञा हो, उतने दिन के बाद जो वह निकाल लिया जाय तब तो उसका जीवन है, नहीं तो कुछ दिनों में उसी जगह नष्ट हो जाएगा। इसलिए प्रतिज्ञा पर साधक पुरुष निकाल लेते हैं । इस समाधि के लगाने वाले नटादिक भी होते हैं और प्रायः करके वैरागी साधुओं में इसका प्रचार विशेष रूप से है, क्योंकि कुछ दिन के पहले एक हरिदास जी साधु ने राजा रणजीतसिंह के समय में राजाजी के सामने भी कई बार समाधि लगाई थी और हरिदास समाधि' नाम की एक पुस्तक भी छपी है, उसमें हरिदास जी का समाधि वगैरह लगाने का सर्व वृत्तान्त लिखा है। ___ हमने तो एक नमूना दिखाया है, दूसरा एक मनुष्य जड़ समाधि लगाने वाला हमने भी देखा है। यह विक्रम संवत् १९३७ या ३८ की बात है । आज भी [ग्रंथ लिखने के समय] शायद वह मनुष्य जीवित हो तो आश्चर्य नहीं। यह समाधि वाला पुरुष, जोधपुर के राज्य में नागोर से ८-६ कोस पर मुदाड़ ग्राम में दो ढाई मास रहा था, जिस ग्राम का जमींदार बाण्टे है। वह समाधि वाला पुरुष पांच दस बार मेरे पास भी आया था और मैंने जब उससे पहले पूछा तब तो नट गया, परन्तु फिर उसने अपना समाधि लगाने का सर्व वृत्तान्त बता दिया। ____ फिर मैंने उससे पूछा कि तुम जो समाधि लगाते हो उस समाधि में किनकिन चिह्नों से शरीर का हाल मालूम होता है और तुमको क्या आनन्द प्राता तब वह मनुष्य बोला, कि शरीर में कुछ नहीं दीखता; केवल शून्याकार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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