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________________ मनुष्य की कभी धन से तृप्ति नहीं हो सकती। रीति से मन्दिर में प्रतिमा का या यन्त्रों का पूजन करते हैं, उसी मन से उस जगह पूजन करे, फिर स्तुति आदि करे, फिर उसका ध्यान कर यथावत् फल पावे, उस रीति से अपने को गुण प्रकट करावे, दूसरी ओर कहीं चित्त को न ले जावे, तो यथावत् स्वरूप को पावे । समाधि के भेदों का वर्णन समाधि के मुख्य दो भेद हैं१. जड़ समाधि, २. चेतन समाधि । चेतन समाधि के भी दो भेद हैं १. पिपीलिका मार्ग २. विहंग मार्ग । विहंग मार्ग के भी दो भेद हैं१. युञ्जान योगी, २. युक्त योगी । ये छः भेद समाधि के हैं । जड़ समाधि के भेदों का वर्णन पाषाण, लकड़ी अथवा मुर्दे (शव) के शरीर के समान चेष्टा करके रहना सुषुप्ति से भी जड़ हो जाना जड़-समाधि का लक्षण है; क्योंकि सुषुप्ति से जागेतब ऐसा भान रहता है कि मैं ऐमा सोया कि कुछ खबर नहीं रही, सो सुषुप्ति में तो इतना ज्ञान भी है, परन्तु जड़ समाधि में इतना भी ज्ञान नहीं रहता है। वैसे ही जड़ समाधि वाला प्राणवायु को साधन कर श्वास को कपाल' में ले जाता है, और जितने दिवस का नियम करे वह जो अपने साधक है उनको कह रखे कि मेरी समाधि उस दिन खुलेगी, तो वे मनुष्य आकर उसी के अनुसार यत्न करके सावधान कर लेते हैं। जड़ समाधि का साधन . इसके साधन की विधि यह है कि पहले जो हमने षट्कर्मादि लिखे हैं उसमें से कितनी एक क्रिया करते हैं, पीछे प्राणायाम करते हैं और कुम्भक को बढ़ाते हैं, सो बढ़ाते-बढ़ाते घण्टों के कुम्भक होने लगे, फिर उससे भी बढ़ातेबढ़ाते दिनों की कुम्भक करने लगे, इस रीति से करते-करते महीनों की कुम्भक हो जाते है। . फिर उस कुम्भक वाले का ऐसा हाल हो जाता है कि वह जब तक बन्द मकान में रहे तब तक जड़ समाधि में बना रहे । जब कि वह बन्द मकान खुले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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