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________________ Rastri The NAWALPAREE अनुकम्पा, स्याद्वाद, अपरिग्रह त मोग से ही अहिंसा संभव है। की आयु वाले देवता हैं, उनको यदि द्रव्यानुयोग के सूक्ष्म सिद्धा षड्द्रव्य की चर्चा में संदेह उत्पन्न होवे, तो जिनेन्द्र भगवान् इस हुए ही मन-वायु की एकता से इन देवताओं के संशय दूर कर देते हैं । इस तरह मनवायु की एकता से श्वास का खेल सद्गुरुत्रों ने बताया है जिसका अनुभव इस चिदानन्द ने भी पाया है। योगशास्त्र में हेमचन्द्रचार्य ने भी ऐसा लिखा है कि जो मनुष्य मन-वायु की एकता कर लेता है वह मनुष्य हजार कोस पर बैठे हुए मनुष्य के शरीर को अपने श्वास-बल से वश कर डालता है। हमने इस जगह किंचित् परिचय लिखा है सद्गुरुओं ने अपने जिज्ञासुओं को विशेष कर दिखाया है जो उन गुरुओं ने अनुभव कराया है वह लेखनी से लिखने में नहीं आ सकता, गुंगे को गुड़ खाना बताया, उसने खाकर स्वाद लिया, पर जिह्वा से कहने न पाया, जिसने पाया उसने छिपाया । . जैन सिद्धान्त में पांच प्रकार का शरीर कहा है, जिनके नाम ये हैंकार्मण, तेजस, औदारिक, वैक्रिय और आहारक । इन पांच प्रकार के शरीरों में चौरासी लक्ष योनियों का समावेश है । इन पांच शरीरों से रहित संसारी जीव तो कोई नहीं है, और जो इन पांच शरीरों से रहित है, वह है सिद्ध भगवान् जो निराकार, निरंजन, ज्योतिस्वरूप, परमात्मा, परब्रह्म, सचिदानन्दमय, स्वरूप-भोगी, स्वस्वरूप रमण, अव्याबाध, अनवगाही, अमूर्त, अनाहारी अव्यवहारी, अचल, अविनाशी, अलख-स्वरूप हैं। बाकी कुल जीव इन पांच शरीरों से सहित हैं। वैक्रिय शरीर नरक गति और देवगति वाले का होता है। आहारक शरीर १४ पूर्वधारी मुनि किसी. कारण से धारण करता है और प्रौदारिक शरीर सर्व मनुष्य और तिर्यञ्च योनि वालों को मिलता है। .. वैक्रियवाले देवों की चार निकाय है-१. भवनपति, २–वानव्यंतरव्यंतर, ३. ज्योतिषी, ४. वैमानिक । इन चारों निकायों में अनेक जातियां देवताओं की हैं। जैसे मनुष्यों में चार वर्ण छत्तीस कौमें प्रसिद्ध हैं, परन्तु जाति भेद नाना हो रहे हैं, जैसे ब्राह्मणों में पांच गौड़ और पांच द्राविड़, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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