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वीच में मत बोलो पूछने पर असत्य भाषण मत करो। मानना ठीक नहीं हो सकता । सर्वज्ञ मतावलम्बी 'तन्दूलबयालिमा सूब' में करोड़ों नाड़ियां शरीर में कही है । परन्तु साढ़े तीन करोड़ रोमावली सर्व मतावलम्बी अंगीकार करते हैं, सो यह सब सूक्ष्म नाड़ियों के भेद हैं । __ और वज्रऋषभनाराच आदि जो संघयण गिनाएं हैं सो नाड़ियों के बंध हैं । इसको यदि 'तन्दूलवयालीया' सूत्र के अनुसार लिखें तो एक ग्रंथ पृथक् ही बन जाए । इसलिए जो मुख्य बातें हैं उन्हीं को गिनाते हैं कि छांटतेछांटते अन्त में मुख्य चौबीस ही नाड़ियां हैं। नाभी के पास में जो कन्द है, उस में से दस नाड़ियां ऊपर को गई हैं। वे जड़ में से दो-दो मिली हुई निकली हैं। सो उसमें भी चार नाड़ी जुड़ी हुई आगे से फटकर और एक बिलकुल अलग हैं। ये पांच नाड़ियां डाबी तरफ से जीमणी तरफ और इसी तरह दूसरी पांच नाड़ियां जीमनी तरफ से डाबी तरफ ऊपर को गई हैं। इस माफिक दस नाड़ियां नीचे गई हैं। और दो-दो नाड़ी दोनों तरफ तिरछी (तिर्यक् ) गई हैं । इस रीति से चौबीस नाड़ियों का वर्णन किया ।
इसमें भी दस नाड़ी मुख्य हैं । कितने ही मतावलम्बी इनको दस वायु भी बताते हैं । प्राण अपानादि दश प्राण पृथक् हैं और दश नाड़ियां मुख्यता करके दशों द्वार में रहती हैं ।
और जिससे ये नाड़ियां बल खींचती हैं, उसी को ऊपर लिखी दस वायू ठहराते हैं । इन दस नाड़ियों के निर्बल होने से इन्द्रियादि भी निर्बल हो जाती हैं, क्योंकि यह अनुभव की बात है कि जन्म के बाद अन्धा, काना, बहरा हो जाना या नासिका का ग्रंध ग्रहण शक्ति क न रहना, इसी प्रकार जिह्वा का स्वाद कम हो जाना, यह सब नाड़ियों का खेल है।
इस प्रकार नाड़ियों के अनेक विचार हैं । परन्तु हमको तो इस जगह समाधि-प्रभृति योग का वर्णन करना है। इसलिए जिन नाड़ियों से मुख्य प्रयोजन है उन्हीं का वर्णन करते हैं।
इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तिजिह्वा,पूषा, यशस्विनी, अलम्बुषा, कुहू, शंखिनी, ये दस मुख्य नाड़ियों के नाम हैं और भी दो चार नाड़ियां योगियों के देखने की हैं वह भी इनके बीच में कहेंगे ।
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