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________________ १२८) दुःख मा जाने पर भी मनपर संयम रखता साहिए। ६ प्रज्ञा चक्र का वान 5. यह आज्ञा चक्र नामक पद्म भृकुटि स्थान में है, और इस पद्म की दो पांखड़ी (कली) हैं और चन्द्रमा के समान उज्ज्वल शोभायमान है । उन दोनों पांखड़ियों पर, 'हं क्षं' ये दो अक्षर हैं। इस पद्म का श्वेत वर्ण है, और शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा के सदृश देदीप्यमान, परम तेजस्वी' चन्द्रबीज-अर्थात् (ठं) बिराजमान है । इस बीज के साथ उक्त पद्म का जो कोई ध्यान करे वह जो इच्छा करे वही उसको प्राप्त होता है और जो कोई इस पद्म का निरन्तर ध्यान करे उसको . पहले तो दीप का. सा धूम्राकार (धुधला) सा प्रकाश मालूम होता है; फिर सूर्य का सा प्रकाश हो जाता है। पश्चात् परमानन्द-मय होकर मन की चंचलता मिटाकर आत्म-समाधि में प्राप्त होता है। इन छः चक्रों का वर्णन तो बहुत पुस्तकों में है, परन्तु सातवें सहस्र दल कमल का गुरु गमता से प्राप्त वर्णन दिखाते हैं। __ ७–सहस्र-दल कमल चक्र का वर्णन यह सहस्र-दल कमल नाम का पद्म कपाल में है और इसकी हजार पांखड़ी (कली) हैं। कितने ही मनुष्य इसको कोरी कल्पना ही कहते हैं । परन्तु गुरुगम से इसका यथावत् हाल मालूम होता है और जो कुल चक्रों को भेदकर इसमें आकर स्थिति करे वह जड़ समाधि का भेद और जो इसका ध्यान करे वह आज्ञाचक्र, और अनहद चक्र इन दोनों को छोड़कर बाकी चक्रों की प्राप्ति कर सकता है। परन्तु यह अनुमान सिद्धि है। मुख्यता करके इस पदम से जड़ समाधि वालों का प्रयोजन है। इस रीति से षट् चक्र का ब्यान लिखा और सातवें का प्रयोजन बताया है, अब नाड़ियों का किंचित् वर्णन करते हैं। नाड़ियों का वर्णन नाडियों का विस्तार तो तन्दूलबयालिया सूत्र में वर्णित है और अन्य मतावलम्बी कुल शरीर में ७२००० हजार नाड़ी मानते हैं, और वे अहोरात्र के इक्कीस हजार छ: सौ (२१६००) श्वास-प्रश्वास मानते हैं । परन्तु यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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