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समस्त प्राणी.सुखपूर्वक जीना चाहते हैं। उसके बीच में सुवर्ण के समान एक कल्याल रूप लिंग-प्रति अनेक अक्षरों करके संयुक्त त्रैलोक्य स्वामी, निर्वाणी, निरंजन, अनाथों का नाथ, साक्षात् बिराजमान दर्शन देता है। इसके मस्तक के ऊपर छिदी हुई. मणि चमकती है, उसको साक्षात् उस कल्याण-रूप मूर्ति का दर्शन होता है - और नाना प्रकार की सिद्धियां और ज्ञानादि उत्पन्न होते हैं ।
सो इसकी पूर्ण विधि तो नाड़ियों का वर्णन और शक्ति-संचार का वर्णन करने के वाद मानसिक पूजन में कहेंगे । परन्तु इस जगह तो उस कल्याण रूप-मूर्ति देखने के वास्ते परमत' और स्वमत वाले बहुत कुछ कह गये हैं; जिसमें स्वमत वालों का किंचित हाल सुनाते हैं। श्री आनन्दघनजी महाराज अपनी 'बहत्तरी' में कहते हैं कि;
"आशा मारी आसन घर घट में, अजपा जाप जपावे ।
आनन्दघन चेतनमय मूरति, नाथ निरंजन पावे ।।१।।" ज्ञानसारजी में भी वे कहते हैं;
"हृदय कमल किरण के भीतर, आत्म रूप प्रकाशे। __ वाको छोड़ दूरतर खोजे, अन्धा जगत् खुलाशे ॥१॥ इस वास्ते जो कोई आत्मार्थी होगा, वह ही इन बातों को जानेगा और करेगा।
५ विशुद्ध चक्र का वर्णन इस विशुद्ध चक्र का स्थान कण्ठ में है, और इस पद्म की सोलह पांखड़ी (कली) हैं, तथा इन सौलह पांखड़ियों पर सोलह अक्षर हैं वे ये हैं;
अं, प्रां, इं, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ल, एं, ऐं, ओं, औं, अं, अंः । इन अक्षरों करके संयुक्त यह चक्र स्वर्ण के समान चमकता है। परन्तु पद्म का रंग धुंए का सा है, और इसका आकाश बीज है। जो कोई पुरुष बीज-सहित विशुद्ध चक्र का ध्यान करेगा, वह पण्डित और योगियों में शिरोमणि और सर्व शास्त्रों के रहस्य को जानने वाला होगा, एवं अनेक तरह की लब्धियां हो जायेंगी, तथा मन की चंचलता भी मिट जायगी।
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