________________
जो सुख दुःसा भाव रखता है, वही सच्चा श्रमण है। MISS
नाड़ियों की उत्पत्ति .. यह इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाम वाली नाड़ियां तो आज्ञा-चक्र से * उत्पन्न हुई हैं और सहस्र दल कमल के पास में होकर मेरु के बराबर में होती
हुई पश्चिम मुख से निकलकर गुह्य स्थान में होकर कन्द को भेद कर नाभि में जो कंद है उसमें मिल गई हैं । फिर आगे को नासा द्वारा अन्य चक्रों को भेदन करती हुई निकलती हैं।
और गुह्यद्वार से ऊपर जो मूलाधार चक्र है उसमें व्याप्त सुषुम्ना नाड़ी के बीच में लिंग देश से निकलकर सिर तक पहुंची हुई वज्र-नाम की एक नाड़ी है वह देदीप्यमान चमकने वाली है। यह नाड़ी योगीश्वरों को ध्यान में प्रतीत होती है, जो मकड़ी के तार से भी सूक्ष्म है और सुषुम्ना नाड़ी उक्त छों पद्मों की नाल को भेद कर गई है। वैसे ही चित्रनाड़ी भी उसी छिद्र से ऊपर को चली गई है और इसी के बीच में एक ब्रह्मनाड़ी बिजली के समान देदीप्यमान है और वह नाड़ी सुषुम्ना से भी मोहनीय स्वरूप वाली है। जिनको शुद्ध ज्ञान प्राप्त हुआ है और जिनका आचरण शुद्ध है उनके देखने में यह नाड़ी ठीक-ठीक आती है, न कि प्रत्येक मनुष्य इसको देख सकता है।
कुण्डली चलाने का उपाय इस कुण्डली के, कुण्डलिनी, नागन, बालरण्डा, शक्ति प्रादि कई नाम हैं । यह कुण्डलिनी नामक नाड़ी सब नाड़ियों के ऊपर स्थित होकर मणिपूरक चक्र कणिका में आवृत करके ब्रह्मरन्ध्र के द्वार को रोक कर सर्वदा रहती है और सुषुम्ना को नहीं जाने देती है। इसलिए प्राण-वायु और अपानवायु को धोंकने वाला अर्थात् उत्तेजित् करने वाला जो पुरुष है वह उस प्राण और अपान वायु की एकता से उत्तेजित हुई जो अग्नि उससे जागृत होकर मन और प्राणवायु सहित सुषुम्ना को सूची तंतु न्याय से ऊपर ले जाता है । जैसे सूई में तंतु (धागा) पोया हुआ हो तो वह सुई कपड़े के अनेक सूतों को भेदकर तंतु-सहित ऊपर को निकल जाती है वैसे ही वह करने वाला पुरुष मन और प्राण वायु के साथ सुषुम्ना नाड़ी को ऊपर ले
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org