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________________ २२२] जघन्य, मध्यम उत्कृष्ट प्रारणायाम जघन्य प्राणायाम में पसीना होता है और मध्यस में कंप होता है तथा उत्कृष्ट प्राणायाग में ब्रह्मरन्ध्र होता है । ब्यालीस विपल से कम कुम्भक रहे तो जधन्य प्राणायाम होता है। चौरासी विपल ६ से कुछ अधिक कुम्भक रहे तो मध्यम प्राणायाम होता है । और बन्धपूर्वक १२५ विपल कुम्भक रहे तो उसको उत्कृष्ट प्राणायाम काल कहते हैं । जब प्राणायाम स्थिर हो जाता है, तब प्रारण ब्रह्मरन्ध्र को प्राप्त होता है । और ब्रह्मरन्ध्र में गया हुआ प्रारण जब पच्चीस पल तक स्थित रहे उसको प्रत्याहार कहते हैं । ऐसे ही धारणा भी है । और जब छः घड़ी तक स्थिर रहे, तब ध्यान होता है । और बारह दिन तक स्थिर रहे, तब ध्यान होता है। प्राणायाम के अभ्यास से जो पसीना हो, उसे शरीर पर तैल की तरह मालिश करे । उस मालिश के होने से शरीर में दृढ़ता - अर्थात् पराक्रम चढ़ता है, शरीर नरम होता है और जड़ता दूर होती है । जो मनुष्य इस प्राणायाम को करे, वह पहले ऊपर लिखे हुए जो तीन बन्ध हैं उनका अभ्यास करे; क्योंकि जो बिना बन्ध के अभ्यास करेगा, उसके बल वीर्य की हानि होगी, और श्वास - कासादिक की बीमारी भी । इसलिये बन्ध-पूर्वक प्राणायाम करे । बन्ध लगाने की रीति बन्ध लगाने की रीति इस प्रकार है कि जिस समय में पूरक करे, उस समय से ही मूलबन्ध को लगावे । अथवा पूरक के अन्त और कुम्भक के आदि में अवश्य केरके मूलबन्ध को लगावे और अर्द्धकुम्भक में जालन्धर ८६ - ६ श्वासोश्वास ६० पल २ || घड़ी ६० घड़ी ६० विपल १ महूर्त कोई किसी दूसरे के दुःख को बंटा नहीं सकता । Jain Education International = = १ पल १ घड़ी ६० मिनिट एक दिन रात = एक पल २ घड़ी For Personal & Private Use Only २४ सेकंड २४ मिनिट १ घण्टा २४ घण्टे २४ मिनिट ४ मिनिट www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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