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________________ किसी के गुप्त रहस्य को कभी भी प्रकट न करें। बन्ध को लगावे । कुम्भक का अन्त और रेचक की आदि में उड़ियान बन्द लगावे। जो इन बन्धों में से कोई एक भी वन्ध को न लगावेगा, उसकी अनेक तरह बीमारी की उत्पत्ति होगी। परन्तु हमारा अनुभव ऐसा भी है कि यदि जालन्धर बन्ध न लगावे तो उसमें कोई हानि न होगी, परन्तु मूलबन्ध और उड़ियान बन्ध यत्न पूर्वक अवश्य ही लगावे। इस प्राणायाम के लिये हमने तीन काल लिखे हैं। परन्तु रात के बारह बजे का चौथा काल भी लिया जाता है। इसलिये चारों काल की संख्या के तीन सौ बीस प्राणायाम होते हैं। यहां पर हम इतना बता देना आवश्यक समझते हैं कि पूरक कुछ शीघ्रता से भी करेगा तो उसको किसी प्रकार की हानि न होगी। परन्तु रेचक करने में यदि शीध्रता करेगा तो वायु रोमों द्वारा निकलकर कुष्ठादि रोगों को उत्पन्न करेगी। जैसे बन्धा हुआ हाथी रस्सी आदि टुटने से अथवा शृखला आदि खोलने से भागता है, और अनेक तरह के उपद्रव करता है । वैसे ही कुंभक की रुकी हुई वायु शीघ्रता से रेचक करने से उपद्रव करती है । इसलिये प्राणायाम करने वाले को यत्न-पूर्वक धीरज के साथ सब काम करना चाहिये। ___ एक बात और भी बताते हैं कि पूरक में दस अक्षरों का जाप है, कुम्भक में सोलह अक्षरों का जाप है और रेचक में भी दस अक्षरों का जाप है। जाप में कोई तो 'प्रणव' (ओंकार) का स्मरण करता है और कोई 'राम" का, कोई “सोऽहं" का, और कोई "अहंम्' का। इस रीति से अपनीअपनी उपासना वाले अपने अपने इष्ट अक्षर का जाप बताते हैं, लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं, परन्तु असल भेद नहीं पाते हैं। इसलिये हमारा यह कथन है कि यदि सद्गुरु मिल जाय तो वह कृपा करके आप ही सर्व भेद जिज्ञासु को बतला देगा । कदाचित्त सद्गुरु का संयोग न मिले, और जिज्ञासा हो तो प्रणव (ॐ) का ध्यान करे, सर्व के जाल को परिहरे, क्योंकि इस प्रणव अक्षर में उसके शब्दार्थ जानने वाले सब मतावलम्बी अपने-अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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