SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८] जो हिंसा और परिग्रह से विरक्त है वही प्रज्ञावान् बुद्ध है। में रखी हुई जो अदृष्ट गोलियां हैं, उनमें से एक गोली निकाले, जब उस गोली की और बुद्धि में विचारे हुए रंग की एकता मिल जाए तो जानें कि तत्त्व मिलने लगा है । अथवा किसी दूसरे से कहे कि तुम अपने मन में किसी एक रंग को विचारो। जब वह कहें कि हां मैंने रंग विचार लिया है, तो उस समय अपने स्वर में तत्त्व को देखे, और जब अपनी बुद्धिपूर्वक तत्त्व का रंग प्रतीत हो तब उस पुरुष को कहे कि तुमने फलाना रंग अपने मन में विचारा है । जो उस पुरुष का रंग अपने कहे हुए रंग के अनुसार मिल जाए तो जानों कि अपना तत्त्व मिलने लगा है। अथवा दर्पण (आईना)को अपने मुख के पास लगाकर नाक का श्वास उसके ऊपर छोड़े, उस कांच के ऊपर श्वास से तत्त्व के अनुसार आकार बनता है, उस आकार से भी तत्त्व की पहचान करें। मुद्रा द्वारा तत्त्वों की पहचान अथवा अंगुठों से दो कानों को मूंदे और तर्जनी से आंखों की पलको को दबावे, मध्यमा से नासिका का स्वर बन्द करे, अनामिका और कनिष्ठिका से होंठों को दबावे इस रीति से दूसरे हाथ से दूसरी तरफ से बन्द करे, और मन को भृकुटि की तरफ ले जाए। उस जगह जैसा तत्व होगा वैसा ही तिलुला अर्थात् बिन्दु आदि से मालूम होगा, इस प्रकार रंग और आकार को जानने के लिए कहा । अब कुछ रस के विषय में कहेंगे । __रस द्वारा तत्त्वों की पहचान जिस समय जो तत्त्व होगा उस समय उस मनुष्य के सूक्ष्म परिणाम में तत्त्व की रसानुसार वांछा हो जाएगी, और गति इसकी ऊंची, नीची, तिरछी, सीधी जैसी हो, गुरु से बोध हो सकता है । प्रकृति या बातचीत द्वारा तत्त्वों की पहचान प्रकृति (स्वभाव) या बातचीत द्वारा तत्त्वों के विषय में यों जानना चाहिए कि जब अग्नितत्त्व होता है उस समय क्रोध स्वभाव होता है, जब जलतत्त्व होता है तो मनुष्य उस समय शीघ्रता से बातचीत करना चाहता है, जब पृथिवी तत्त्व होता है, उस समय धर्य से बातचीत करने को चित्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy