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________________ भयभीत व्यक्ति किसी भी गुरुतर दायित्वको नहीं निभा सकता [१८ चाहता है । जब वायु तत्त्व होता है तो उस समय प्रसंग छोड़कर दूसरी बात - करने लगता है अथवा मानपूर्वक वचन बोलता है। आकाश-तत्त्व में तो तूष्णी अर्थात् गुम्म हो जाता है। जब अग्नितत्त्व चलता है, उस समय उष्ण . वायु निकलती है, और जब जलतत्त्व बहता है तब शीतल वायु निकलती है, और पृथ्वी तत्त्व बहते समय मिश्र अर्थात् दोनों तरह की निकलती है, और वायु तत्त्व चलते समय न शीतल न उष्ण', आकाश-तत्त्व के बहते समय वायु निकलती नहीं, परन्तु सूक्ष्मता से चींटी का रेंगना नाक में मालूम होता है । इस प्रकार स्थूल तत्त्वों के परिज्ञान के विषय में कहा, परन्तु स्थूल तत्त्वों की जब यथावत् पहचान हो जाये, फिर गुरु कृपा करे तो एक-एक तत्त्व में जो पांचों तत्त्व चलते हैं, उन सबकी पहचान होनी सरल हो जाती है।। विशेषकर जो तत्त्वों के अन्तर्गत अर्थात् एक तत्त्व के अन्तर्गत पांचों तत्त्वों को पहचाने तो वह योगी यथावत् कारण-कार्य की गति जान सकता है। जब तक तत्त्व के अन्तर्गत तत्त्वों को न जाने गा तब तक यथार्थ रीति से कार्य को भी न पहचानेगा, केवल स्वरोदय के अभिमान को तानेगा । परन्तु इन सब में भी मुख्य सगुण और निर्गुण का जानना है, सो बिना गुरु चरणसेवा के सगुण निर्गुण का पाना कठिन है । इसलिए जो जिज्ञासु इस योगाभ्यास की इच्छा करे वह प्रथम स्वर का अभ्यास कर ले । स्वर का भेद बताने में गुरु की परीक्षा भी हो जाएगी, फिर योगाभ्यास का साधन करना सुगम हो जायेगा । योगाभ्यास में क्रियाओं द्वारा रोग निवृत्ति दिखाते हैं । क्रियायें नेती १ धोती २ ब्रह्मदातन ३ गजकर्म ४ नोली ५ बस्ती ६ गणेश-क्रियाः ७ बागी ८ शंख-पखाली ६ त्राटक १० । इन दस क्रियाओं में से कई एक क्रिया तो अन्यमत के लोग वैरागी, उदासी, दादूपन्थी आदि करते हैं, और उन लोगों में इन क्रियाओं की प्रसिद्धि भी है। इन क्रियाओं को देखकर लोग कहते हैं कि ये लोग समाधि लगाते हैं और पूरे योगी है । परन्तु देखा जाए तो इन क्रियाओं में योग-समाधि का नाम निशान भी नहीं है; जैनमत में इन चीजों की वर्तमान काल में धारणा है कि यह अन्य मत की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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