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२०] माधुर्य रहित बच्चन, शक्ति रहित पौरुष, ध्यान रहित चितन न शोभे ।
१ --- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान और समाधि | हठयोग के ध्यान को ज्योतिर्ध्यान भी कहते हैं. ।
योग के सम्बन्ध में आज के लोगों में कुछ ऐसी मान्यता हो गई है कि योग सामान्य व्यक्ति से एकदम अगम्य है । योगी, जोगी, सन्यासी, वैरागी आदि नामों से प्रसिद्ध होने वालों में मानो कोई जड़ी-बूटी का चमत्कार हो, वे भभूति डालने वाले हैं, प्रकृतिगत अज्ञेय सत्ता को वश में करने वाले हैं ऐसी धारणा लोगों के दिलों में बैठ गई है । स्वार्थ साधने की इच्छा वाले, सांसारिक वस्तुओं अथवा ख्याति को चाहने वाले और लोगों के व्हम और व्युदग्राह पर आजीवका पर निर्भर रहने वाले लोगों ने ऐसे खोटे विचारों का खूब प्रचार किया है । इस प्रकार वे लोग जनता को धोखे में लाकर खूब ठगते हैं । अतः उन से सावधान रहना चाहिये ।
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महर्षि पतंजली अपने योगदर्शन २।२६ में लिखते हैं कि
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" यम-नियम - Ssसन - प्रारणायाम प्रत्याहार - धारणा -ध्यान समाधयोऽष्टांगानि ।” अर्थात् – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये योग के आठ अंग हैं ।
जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र ने योग शास्त्र में, शुभचन्द्र जैनाचार्य ने ज्ञानार्णव में भी इन आठ अंगों का प्रतिपादन किया है ।
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प्राणायाम
हठयोग के उपर्युक्त आठ अंगों में प्राणायाम चौथे नम्बर पर तथा दूसरी प्रकार से इसे सात अंगों में विभक्त किया गया है, उसमें प्राणायाम का पांचवां अंग माना है । वे सात अंग इस प्रकार है
१ – षट्कर्म, २ – आसन, ३ – मुद्रा, ४ – प्रत्याहार, ५ – प्राणायाम, ६ -- ध्यान, ७ -- समाधि | पतंजली आदि प्रमुख योगाचार्यों ने मोक्ष साधन के लिये प्राणायाम को उपयोगी मान कर स्वीकार किया है । पर वास्तव में प्राणायाम मोक्ष के साधनरूप ध्यान और समाधि के लिये अन्तःकरण की स्थिरता और निर्मलता के लिये अंशत: उपयोगी सिद्ध हो सकता है । इसलिये प्राणायाम को चित्त — अन्तःकरण को स्थिर और निर्मल करने में हेतुभूत होने
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