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________________ तप बिना भिक्षु, शान बिना मुनि, पारिष बिना श्रमण न शो। [२१ से मुमुक्षु आत्मा को मोक्ष प्राप्ति के लिये अग्रसर होने में प्रथम सोपान कह सकते हैं । पतंजली ने योग की व्याख्या करते हुए-"योगश्चित्तवृत्तिनिरोषः" अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध करना योग है ऐसा कहा है । मात्र इतना ही नहीं प्राणायाम की साधना से अनेक प्रकार की सिद्धियों, निधियों और लब्धियों की प्राप्ति भी होती है । तथा चमत्कारों आदि की योग्यता भी प्राप्त होती है। इसको जैनाचार्यों ने भी स्वीकार कर साधक को इनके प्रलोभन में न आने के लिये सावधान भी किया है और कहा है कि यदि साधक इनके प्रलोभन में आ जावेगा तो उसका पतन हो जावेगा। स्वर साधना की उपयोगिता प्राणायाम द्वारा स्वरोदय की साधना से मानव अपने तथा दूसरों के भूत, भविष्यत और वर्तमान में होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का सहज में ही ज्ञान प्राप्त कर लेता है। श्री कल्पसूत्रादि जैनागमों में अष्टांग निमित्त में 'स्वर' को एक प्रधान अंग माना हैं। हठयोग प्राणायाम से सिद्ध होता है । प्राणायाम स्वरोदय साधना के बिना अधरा ही रह जाता है। मात्र इतना ही नहीं गणितज्ञ (ज्योतिषी) का ज्योतिष भी स्वरोदय ज्ञान के बिना लंगड़ा है। स्वरोदय ज्ञानी नाक पर हाथ रख कर नाक की नासिकाओं (नथनों) में से निकलते हुए श्वास को परख कर समस्त प्रश्नों का सच्चा उत्तर देकर सब समाधान करने में समर्थ हो जाता है। लाभालाभ, तेज़ी मंदी, वृष्टि-अनावृष्टि, सहयोग-वियोग, मित्रताशत्रुता, युद्ध-मुकदमे आदि में जय-पराजय, वर्षफल, गर्भ में पुत्र-पुत्री, परदेश गमन से सफलता-असफलता, कार्य की सिद्धि-प्रसिद्धि आदि नाना प्रकार की गुत्थियों को सुलझाने में स्वरोदय ज्ञान एक चमत्कारी विद्या है। मेरे विचार से जैन योगियों ने हठयोग का निषेध मोक्ष प्राप्ति का हेतुभूत न होने के कारण ही किया होगा जो कि वास्तविक है। क्योंकि हठयोग में आत्मा को भवभ्रमण से मुक्त होने का कोई विधान नहीं है । पर आत्मा को मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करने के लिये हेतभूत चित्तवृत्ति निरोध के लिये तो इसका उपयोग परम योगीराज आनन्दधन जी, उपाध्याय यशोविजय जी, चिदानन्द जी, . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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