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________________ TAN] लोकेषणासे मुक्त रहो, पाप प्रवृत्तियोंसे बच सागि प्रकारवार भी कुछ बतलाते हैं कि, माथा जमीन से लगा रहे और बाकी कुल रीति उस प्रकार से जान लेनी चाहिये। ..इसके कुछ गुरण इम मयूर-प्रासन के करने में क्या लाभ है, अथवा क्या-क्या फायदे हैं वही दिखाते हैं-इस के आसन करने में जलन्धर, तापतिल्ली, फीया आदि अनेक रोग चले जाते हैं, और वात, पित्त, कफ, इनको भी यह मयूरासन नाश करता है अर्थात् विषम दोषों को सम करता है । जो कदाचित् कुत्सित अन्न खाया जाय तो उसे भी भस्म कर देता है, और जब बस्ति करने का काम पड़े अथवा कुछ जल पेट में रह जाय तो इसके करने से जल्दी रेचन हो जाता है। १०-सिंहासन दोनों घोटू जमीन पर टेककर दोनों एडियों को गुदा के पास ले जाकर उसके ऊपर बैठ जाय और दोनों हाथों के पंजे अर्थात् अंगुली पेट की तरफ और हथेली घोटू की तरफ करके सतर बैठ जाय, परन्तु हाथ में किसी तरह का शल्य न हो, और गरदन को कुछ झुकी हुई सामने रखे दोनों आंखों की पुतली दोनों भंवरों (भोंओं) के बीच में रखे, और मुख को फाड़े, जीभ को अच्छी तरह से बाहर निकाले, और सिंह की तरह गर्जना अर्थात् शब्द करे । इसका अभ्यास करने से शरीर में फुरती बनी रहती है, और तेजी बनी रहती है। कदाचित् गोचरी (भिक्षा) में खटाई आदि आ जाय तो खाने के बाद इस आसन को करे । इससे योग में किसी प्रकार का विघ्न न होगा। अब ऊपर लिखे हुए आसनों में परिश्रम होता है, इसको दूर करने के वास्ते शिवासन को अवश्य मेव करे। इसलिये शिवासन का स्वरूप लिखते ११-शिवासन जमीन से पीठ लगाकर शयन करे और हाथ पांव सीधे कर दे, अर्थात् जैसे मुर्दा होता है वैसे सरल होकर सो जाय । इस आसन से शरीर का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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