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________________ हाथों के ऊपर खड़ा रहे इसी का नाम कुक्कुटासन है।. १७३ ७-धनुषासन दोनों पांवों के अंगूठों को दोनों हाथों से ग्रहण करके एक को कानपर्यन्त लावे, धनुष की तरह पाकर्पण करे । अथवा ऐसा भी कहते हैं कि एक पैर को फैला करके, एक से अंगुठा को ग्रहण करे और एक हाथ कानपर्यन्त करे इसका नाम धनुषासन है। ८-पश्चिमोतानासन दोनों पांव दण्ड की तरह लम्बे करे और धरती को पैरों से पकड़े, अर्थात् पांवों को चिपटे जमा रखे, और दोनों हाथों को फैलाकर पांवों के दोनों अंगूठों को दोनों हाथों से पकड़े, परन्तु पांव ऊपर को न उठने पावे, ज़मीन से ही लगे रहें, फिर माथे को नीचा करके जंघों के ऊपर लगाकर स्थिर हो जाय, अथवा दोनों पांवों को चिपटा ले, और दोनों हाथ पैरों के इधर-उधर से करके तलवों के बीच में हाथों की दसों अंगुलियां मिलावे, परन्तु अंगुली ऐसी मिलावे कि छूट न जाय,फिर माथा जंधा के ऊपर रखकर स्थिर हो जाय। इस आसनके कुछ गुण दिखलाते हैं । यह आसन ऊपर कहे प्रासनों में से मुख्य आसन है और सुषुम्णा-मार्ग को बतानेवाला है, प्राणों की गति सूक्ष्म अर्थात् धीमा करनेवाला है, पेट की अग्नि को तीव्र करता है और उड्यान-बन्ध में भी मदद देता है, पेट के मध्य भाग को कृश वनाता है, जिससे तोंद नहीं निकलती, पेट पतला बना रहता हैं, और कब्जियत (मलावरोध) को दूर करता है, दस्त को साफ (खलासा) करता है। जो मनुष्य इस आसन को लगाने का अभ्यास करेगा, उसको शरीर सम्बन्धी अनेक प्रकार के लाभों के अतिरिक्त योगाभ्यास में विशेष सहायता मिलेगी। ह-मयूरासन - दोनों हाथ जमीन पर रखकर दोनों कुहणी (कोणी) मिलाकर नाभि और कलेजा के बीच में रखकर कोणियों के ऊपर सब शरीर का भार . देकर दोनों पांव पीछे से ऊंचे उठावे, और जमीन पर सिवाय हाथों के कोई शरीर का अंगं न रहने दे । जैसे मयूर अपने पंखों को ऊपर करके नाचता है, इसी रीति से पांव ऊंचा करे, इसी का नाम मयूरासन है । इसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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