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किसी भी वस्तु को ललचाई दृष्टि से न देखो। • अग्नि बाण बिन्दु लखन, इत्यादिक बहु रीत ।
काल परीक्षा की सहु, जानो गुरुगम मीत ॥ ३७० ॥ कृतिका भरणी विशाखा धार, मंगल सूर्य शनीश्चर वार ॥१५॥ तिथि नवमी षष्टि द्वादशी, चौथ अष्टमी अमावसी।
रोग उपजे ऐसे जोग, तो जानहु यम को पुर भोग ॥१६॥ अर्थ-पाद्रा, शतभिष, अश्लेष, पूर्वा तीन (पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपद) धनिष्टा, कृतिका, भरणी, विशाखा नक्षत्र, मंगल, रवि तथा शनिवार । नवमी, छठ, बारस, चौथ, अष्टमी, अमावस तिथियां, इन योगों में रोग हो तो रोगी की मृत्यु हो ।१५-१६ ,
(फ) (१) यदि नाक का भाग बाईं और झुक जाय तो उसकी मृत्यु शुक्ल पक्ष में होती है । यदि नाक दाई ओर को टेढ़ी हो जाय तो कृष्ण पक्ष में मृत्यु अवश्यम्भावी है। ___(२) सप्त ऋषि मंडल में अरुन्धती (सबसे छोटा तारा) तथा ध्रुव तारा यदि दिखलाई न दे तो समझ लेना कि प्रायुष्य समाप्त होने जा रही है। ___ (३) मृत्यु समीप होने पर प्रांखों से नाक का अग्रभाग, ऊपर की ओर देखने पर भोहों के बीच का भाग तथा जीभ का अग्रभाग दिखलाई नहीं दे तो
(४) भोहों के न दिखलाई पड़ने पर नौ दिन की; कानों में अंगुली लगा लेने पर यदि भीतर की ध्वनि सृनाई न पड़े तो सात दिन में; अरुन्धती तारा न दिखलाई पड़ने पर पांच दिन में, नाक का अग्रभाग न दिखलाई पड़ने पर तीन दिन में और जीभ का अग्रभाग न दिखलाई पड़ने पर एक दिन में मृत्यु अवश्यम्भावी है।
(५) जिसके दांतों और अण्डकोश को दबाने पर भी दर्द न हो उसकी आयु केवल तीन मास बाकी है।
(६) जिसकी दृष्टि तिलमिलाती है और देखने में पीड़ा का अनुभव हो वह चार महीने तक जीता है।
(७) जिसके भोहों के ऊपर (मस्तक) की चमड़ी सुन्न पड़ जाती है और उस में सई आदि की नोक चुभाने पर भी पीड़ा का अनुभव नहीं होता, उसकी
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