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________________ अयोग्य वस्तु, कैसी भी क्यों न हो, कभी मत ग्रहण करो। अर्थ-यदि एक पक्ष तक विपरीत स्वर चले तो शरीर में रोग हो, दो पक्ष तक विपरीत स्वर चले तो मित्र शत्रु बने तथा तीन पक्ष तक विपरीत स्वर चले तो अपनी मृत्यु समीप जाननी चाहिए-३६६ होय असमर्थ काम जब, पांडु वर्ण होय श्वास । हो तस कल बल हीनता, एक मास तस नास ॥१०॥ - अर्थ-शरीर में काम की शक्ति न रहे, शरीर का रंग सफेद हो जाय, शरीर शक्ति तथा गति हीन हो जाय तो उसकी एक मास में मृत्यु हो।१० उदर वह्नी जस उपसमे, मुख की अग्नि जु होय । बन्ध खिरो मेहन' झरे, मरे पंच दिन सोय ॥११॥ अर्थ-मुख की भूख तो हो किन्तु खाया न जाय, सदा दस्त लगें और पेशाब . टपकता रहे तो रोगी की मृत्यु पांच दिनों में हो।११ ।। . नीला वरण होठ होय दोय, कफ जु जम्बूफल सरिखो होय । __ रोगी रोग जीते सो जान, मरण कह्यो तसु तव काल ज्ञान ॥१२ अर्थ-जिसके दोनों होंठ नीले हो जायें, जिसका थूक जामुन के रंग समान हो जाय तो समझ लेना चाहिए कि उस रोगी को रोग ने जीत लिया है। अर्थात् उसकी मृत्यु तत्काल होगी। १२ । ये दोनों तब कहे असाध्य, इनको लगी मरण की व्याध । . नारी वदन सोफ जब चढे, पगे सोफ जब नर के बढ़े ॥१३॥ अर्थ-स्त्री के मुख पर तथा पुरुष के पैरों पर जब सूजन आ जावे तो इन दोनों के रोग को असाध्य समझना चाहिए । अर्थात् इनकी मृत्यु अवश्य हो ।१३ : भरणी मघा पूर्वा ये तीन, हस्त शतभिषा आद्रा कीन । इन नक्षत्रों में उपजे रोग, तो जानिये काल संजोग ॥१४॥ __ अथ-भरणी, मघा, तीनों पूर्वा, हस्त, शतभिष, आद्रा इन नक्षत्रों में यदि रोग हो तो रोगी की अवश्य मृत्यु हो ।१४ . आद्रा शताभिष अरु अश्लेष, पूर्वा तीन धनिष्टा लेख । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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