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________________ त्यक्त वस्तु का पुनः सेवन न करने वाला ही सच्चा त्यागी है। [१३९ अर्थ-यदि अग्नि बाण, बिन्दु दिखलाई पड़ें तो भी मृत्यु समीप समझना चाहिए। इस प्रकार काल ज्ञान की परीक्षा बहुत प्रकार से कह दी है । अतः सब प्रकार का काल परीक्षा सम्बन्धी ज्ञान किसी योगी गुरु से जान लेना चाहिए.-३७० आयु पांच महीने है। (८) जिस व्यक्ति के दोनों हाथों की अथवा किसी एक हाथ की कनिष्टा (सव से छोटीं) अंगुली तथा अंगूठे के बीच की तीन अंगुलियां मोड़ने से न मुड़ें, कण्ठ सूखता सा प्रतीत हो, थोड़ी-थोड़ी देर में प्यास का अनुभव हो उसकी आयु छः महीने की होती है। (९) जिसके हाथों की हथेली (गदेली) और जीभ की जड़ में पीड़ा का अनुभव हो, खून का रंग बदल कर काला या मटमैला हो जाय अथवा शरीर में कांटा या सूई प्रादि के चुभने से पीड़ा का अनुभव न हो उसकी मृत्यु सात महीने में अवश्यम्भावी है। (१०) जिसको दीपक की लौ कभी चमकती हुई और कभी काले रंग की दिखलाई पड़े अथवा जिसे संसार के सभी पदार्थों के रूप विकृत प्रतीत हों, उसकी मृत्यु नौ महीने के अन्दर हो जाती है । (११) नाक टेढ़ी होना या कान छोटे बड़े हो जाना । अथवा बायें नेत्र से बिना रोग के ही प्रांसू बहते रहना (१२) मुंह गरम और नाभी का यकायक शीतल हो जाना अथवा अपने सफेद वस्त्र काले या लाल रंग के दिखाई पड़ना (१३) जिसे सूर्य अथवा चन्द्रमा की बढ़ती हुई किरणों का अनुभव न हो . और दहकती हुई अग्नि का ताप भी प्रतीत न होता हो, उसकी आयु ग्यारह महीने तक की होती है। (१४) जिसे स्वच्छ अाकाश भी कुहरे से भरे हुए के समान दिखलाई देता हो अथवा चन्द्रमा के मध्य का श्याम रंग स्पष्ट न दिखलाई देता हो अथवा शुक्र तारा छोटा और साधारण तारा गणों की तरह प्रतीत होता हो तो उसकी मृत्यु साल भर में हो जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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