SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि का हृदय शरत्कालीन नदी जल के समान निर्मल होता है । दिवानाथ हो दिवस में, निशा निशाकर श्वास । चिदानन्द षट् मास तक जीवितव्य की आस ।। ३५ ।। , अर्थ - ( 8 ) यदि दिन भर सूर्य स्वर चले और रात भर चन्द्र स्वर चले तो छः महीने की आयु जानना चाहिए - ३५६ [ १२५ के 'घर, घीमेल तथा भ्रमरियां एकदम विशेष संख्या में दिखलाई दें तो उद्वेग, क्लेश, व्याधि अथवा मृत्यु हो । (२) जूते, हाथी, घोड़ा आदि वाहन, छत्र, शस्त्र, शरीर और केश (सिर के बाल ) इनमें से किसी को कौआ चोंच से स्पर्श. करे तो समझ लें कि मृत्यु समीप है । ( ३ ) प्रांखों से आंसू बहाती गाय बहुत ज़ोर से अपने खुर से पृथ्वी को खोदे तो गाय के स्वामी की रोग से मृत्यु हो । २३ - रोगी मनुष्य के लिए शकुन द्वारा काल ज्ञान (१) रोगी जब अपनी आयुष्य सम्बन्धी शकुन देखता हो तब यदि कुत्ता दक्षिण दिशा सन्मुख जाकर अपनी गुदा को चाटे तो एक दिन में मृत्यु हो । (२) यदि कुत्ता अपना हृदय चाटे तो दो दिनों में रोगी मरे । ( ३ ) यदि कुत्ता अपनी पूंछ चाटे तो रोगी तीन दिन में मरे । यदि कुत्ता अपना सारा शरीर संकुचित करके सोवे अथवा कानों को फड़फड़ावे और शरीर को ध्रुजावे तो रोगी की मृत्यु हो । ( ५ ) यदि कुत्ता मुंह ढीला करके लाल टपकावे और आंखें मीचकर शरीर को संकुचित करके सोवे तो रोगी की निश्चय मृत्यु हो । २४ - कौए के शकुन द्वारा श्रायुष्य ज्ञान (१) यदि रोगी के घर पर प्रातः, दोपहर और सायं तीन काल कौओं का समुदाय (टोले ) मिलकर कोलाहल करें तो रोगी की निश्चय मृत्यु हो । ( २ ) रोगी के रसोईघर पर, शयनागार ( सोने के घर ) पर कौए चमड़ा, हड्डी, रस्सीरस्सा, केश ( सिर के बाल ) लाकर फैंके तो रोगी की मृत्यु नजदीक है । २५ – उपश्रुति द्वारा काल ज्ञान उपश्रुति द्वारा आयुष्य निर्णय करने की विधि बतलाते हैं - ( १ ) भद्रादि अपयोग न हों ऐसे उत्तम दिन, रात को सोने के समय (तीन घंटे रात बीतने के बाद) पूर्व, उत्तर अथवा पश्चिम दिशा की तरफ जावें । जाने से पहले नवकार मंत्र से अथवा सूरि मंत्र से कान पवित्र (मंत्रित) करें तत्पश्चात् घर से निकलें For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy