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________________ RE .. जो विचारपूर्वक बोलता है वही सच्चा निम्रन्य है। चार. माठ द्वादश दिवस सोलस बीस विचार । . चलत चन्द नितमेव इम, आयु दीरघ धार ॥ ३६० ॥ अर्थ-(१०) यदि चार आठ, बारह, सोलह अथवा बीस दिन रात निरंतर चन्द्र स्वर चलता रहे तो दीर्घ आयु जाननी चाहिए-३६० रास्ते में किसी के शब्द कानों में न आवे इस प्रकार कानों को ढांक कर शिल्पियों के घर की तरफ अथवा बाज़ार में पहले कही हुई तीनों दिशाओं में से किसी एक दिशा की तरफ जावें। वहां जाकर भूमि को चन्दन द्वारा पूजन करके उम पर गंध-अक्षत (बरास-चावल) डालकर सावधान होकर किसी भी मनुष्य का शब्द होता हो तो कानों को खोलकर सुने । उनको सुनकर आयुष्य का निर्णय जाने। (२) उपश्रुति के शब्द दो प्रकार के हैं—अर्थांतरापदेश्य उपश्रुति और स्वरूप-उपश्रुति । अर्थांतरापदेश्य उपश्रुति अर्थात् जो शब्द सुनाई दें उसका कोई दूसरा अर्थ हो । स्वरूप उपश्रुति अर्थात् जैसा शब्द सुनाई दे वैसा ही अर्थ हो । अथवा वैसा ही अर्थ ग्रहण करना। पहली अर्थांतरापदेश्य उपश्रुति विचार से जानी जाती है और दूसरी स्वरूप उपश्रुति अर्थ से जानी जाती है । अर्थांतरापदेश्य उपश्रुति बतलाती है जैसे कि इस घर का स्तम्भ पांच-छः दिनों में अथवा पांच-छः पक्षों; महीनों; वर्षों में टूट जायेगा अथवा नहीं टूटेगा। वह बहुत मजबूत था पर जल्दी टूट जावेगा इत्यादि । इस पर से अपनी आयुष्य का वैसा ही निर्णय कर लेना कि इतने दिनों, पक्षों, महीनों अथवा वर्षों में मृत्यु होगी। दूसरी स्वरूप उपश्रुति कहती है कि-(१) यह पुरुष अथवा स्त्री इस स्थान से नहीं जावेगा, हम इसे जाने भी नहीं देंगे और वह जाना भी नहीं चाहता । (२) जाने की इच्छा करता है, मैं भी उसे भेजना चाहता हूं, इसलिए अब वह यहां से जल्दी जायेगा। इससे समझ लेना चाहिये कि यदि जाने का सुने तो मृत्यु समीप है और यदि रहने का सुने तो अभी मृत्यु नहीं है । इस प्रकार कान खोलकर अपने द्वारा सुनी हुई उपश्रुति द्वारा कुशल समझदार व्यक्ति समीप या दूर अपनी आयुष्य का निर्णय जान सकता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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