SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय पर प्राप्त उचित वस्तु की अवहेलना मत करो। [१११ ढाई-ढाई घड़ी (एक-एक घंटे) तक दोनों (चन्द्र तथा सूर्य) स्वर चलते हैं। है यह योगी पुरुषों का कहना है-२७६ जीवेन गृह्यते जीवो-जीवो जीवस्य दीयते । जीवस्थाने गतो जीवो बाला जीवान्त कारकः॥ २७७ ॥ अर्थ-पुरुष अपने जीव स्वर में स्त्री के जीव स्वर को पकड़े और स्त्री के जीव स्वर से इस प्रकार जीव के स्थान में गया हुआ जीव जिसको हो ऐसा पुरुष जन्म भर उस स्त्री के वश में रहता है-२७७ रात्र्यन्तयाम वेलायां प्रसुप्ते कामिनीजने । - ब्रह्मजीवं पिवेद्यस्तु बाला प्राणहरो नरा ॥ २७८ ॥ अर्थ-रात्री के पिछले पहर जब स्त्री सोई रहती है उस समय जो पुरुष ब्रह्मा जीव (सुखमना स्वर) को पीता है वह पुरुष स्त्री के प्राणों को वश में करता है—२७८ । . अष्टाक्षरं जपित्वा तु तस्मिन् काले गते सति । तत्क्षणं दीयते चन्द्रो मोहमायाति कामिनी ॥ २७६ ॥ अर्थ-उस काल के व्यतीत होने पर अष्टाक्षर मत्र को जप कर जो पुरुष अपना चन्द्र स्वर स्त्री को देता है तो वह कामिनी उसी क्षण मोह को प्राप्त होती है-२७६ अथ अष्टाक्षर मंत्र:--ॐ नमो अरिहंताणं । शयने वा प्रसंगे वा युवत्यालिंगनेऽपि वा । . यः सूर्यग पिवेच्चन्द्रं स भवेन्मकरध्वजः ॥ २८० ॥ . अर्थ-सोते समय अथवा स्त्री संग करते समय अथवा आलिंगन करते समय जो पुरुष अपने सूर्य स्वर से स्त्री के चन्द्र स्वर को पीता है . वह पुरुष कामदेव के समान मोह करने वाला होता है-२८० शिव आलिंग्यते शक्तया प्रसंगे दक्षिणेऽपि वा। तत्क्षणाद्दापयेद्यस्तु मोह्य त्कामिनी शतम् ॥ २८१ ॥ अर्थ-पुरुष यदि अपने सूर्य स्वर में स्त्री के चन्द्र स्वर से स्त्री संग के समय मिल जाय अथवा स्त्री के सूर्य स्वर में अपना चन्द्र स्वर स्त्री को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy