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________________ अपने समान ही दूसरों को भी देखो। । तथा तेरह श्वास तक सुखमन स्वर चलता है-३५० दे दे तो वह पुरुष सौ कामिनियों को मोह सकता है-२८१ सप्त-नव-त्रयः पंचवारान् संगस्तु सूर्य भे। चन्द्रे द्वि-तुर्य-षट् कृत्वा वश्या भवति कामिनी ॥ २८२॥ अर्थ-स्त्री के चन्द्र स्वर चलता हो तथा पुरुष का सूर्य स्वर चलता हो इन दोनों स्वरों के मेल से सात, नव, तीन, पांच वार संगम हो जाय अथवा स्त्री से चन्द्र स्वर में अपना सूर्य स्वर हो तो दो, चार, छः बार मिल जाय तो वह कामिनी वश में होती है-२८२ : सूर्य-चन्द्रौ समाकृष्य सर्पाक्रान्त्याऽधरोष्ठयोः । महापद्म मुखं स्पृष्ट्व वारं वारमिदं चरेत् ।। २८३ ॥ अर्थ-अपने सूर्य और चन्द्र स्वर को सर्प की गति से खींच कर अधरोष्ठों पर स्त्री के मुख से अपना मुख स्पर्श करके वारम्वार पूर्वोक्त प्रकार से चन्द्र और सूर्य का मेल करे-२८३. आप्राणमिति पद्मस्य यावन्निद्रावशं गता। पश्चाज्जागृति वेलायां चोष्येते गल चक्षुषी ॥ २८४ ।। अर्थ-जब तक स्त्री निद्रा के वश रहे तब तक पूर्वोक्त प्रकार से स्त्री मुख कमल का पान करे पीछे जागने के समय गले और नेत्रों का चुनम्ब करे-२८४ ज्ञानाणेव प्र० २६ से वशीकरण लिखते हैं नृपति-गुरु-बन्धु वृद्धा अपरेऽप्यभिलषित स्त्रीलोकः । पूर्णांगे कर्तव्या विदुषा वीत-प्रपञ्चेन ॥ ६० ॥ अर्थ-यहां वशीकरण प्रयोग है—सो राजा, गुरु, बंधु, वृद्धपुरुष तथा अन्य लोगों से भी अपने वांछित को प्राप्त करना चाहते हों तो प्रपंच रहित पंडित पुरुषों को चाहिए कि वशीकरण प्रयोग करे अर्थात् भरे स्वर की तरफ उन्हें बिठा कर वार्तालाप करने से वे अपने अनुकुल हो जायेंगे-६० शयनासनेषु दक्षः पूर्णांगनिवेशितासु योषासु । ह्रियते चेतस्त्वरितं नातोऽन्यदृश्य-विज्ञानम ।। ६१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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