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________________ ११] भले ही कोई साथ न दे, अकेले ही सद्धर्म का प्रावरण करो। वर्ष-यदि ऊपर कहे हुए से विपरीत स्वर चले तो जानना चाहिए कि मृत्यु समीप है । इसमें संशय नहीं है-३४६ लाभालाभ प्रश्न (७) वरुणे त्वरितो लाभश्चिरेण भौभे तदाथिने वाच्यम् । .. तुच्छतरः पवनाख्ये सिद्धोऽपि विनश्यते वह्नौ ॥५४ ॥ (ज्ञानार्णवे) . अर्थ-जल तत्त्व के होने पर तुरत ही लाभ कहे तथा पृथ्वी तत्त्व हो तो देरी से लाभ कहे। पवन तत्त्व हो तो बहुत थोड़ा लाभ कहे। यदि अग्नि तत्त्व हो तो सिद्ध हुअा लाभ भी नाश को प्राप्त होता है—५४ । (८) नाड़ी बदलना हो तो-ज्ञानार्णव प्र० २६ में __ दक्षिणामथवा वामां यो निषद्ध समीप्सति । तदङ्ग पीडयेदन्यां नासा-नाडी समाश्रयेत् ॥ ६६ ॥ अर्थ-दाईं अथवा बाई नाड़ी को बदलना चाहें तो उस नाड़ी की नासिका को पीडें तथा दाबें तो नाड़ी बदल जावेगी अर्थात् बाई से दाहिनी तथा दाहिनी से बांईं नाड़ी हो जावेगी। (९) नाड़ी का संक्रमन-यथा ज्ञानार्णव प्र० २६ में संचरति यदा वायुस्तत्त्वात्तत्वान्तरं तदा ज्ञेयम् । यत्त्यजति तद्धि रिक्त तत्पूर्णं यत्र संक्रमति ।। ७४ ॥ अर्थ-जिस समय पवन एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व में संचरती-बदलती हो उस समय जिसको छोड़े सो रिक्त पवन कहा जाता है। जिसमें संचरे उसे पूर्ण पवन कहा जाता है-७४ ६६. यहां पर शिव स्वरोदय से वशीकरण लिखते हैं जिससे गृह कलह शान्त होकर पति-पत्नी परस्पर प्रेम-पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें इसी लिए यह प्रकरण दिया जाता है। चन्द्र सूर्येण चाकृष्य स्थापयेज्जीव-मंडले। आजन्मवशगा रामा कथिते यं तपोधनैः ॥ २७६ ॥ . अर्थ-स्त्री के चन्द्र स्वर को अपने सूर्य स्वर से आकर्षण करके अपने जीव स्वर के मंडल में टिकावे तो स्त्री जन्म भर अपने वश में होती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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