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________________ गुरुजनों की भावनाओं का प्रादर करनेवाला शिष्य ही पूजनीय है । सार्धं युगल घटिका चले, चन्द सूर सुर वाय । श्वास त्रयोदश सुखमन, जानो चित्त लगाय ।। ३५० ।। जीवस्तदेव तत्त्वं विरला जानन्ति तत्त्वविदः ॥ ७६ ॥ (२) चन्द्र नासिका में प्रवेश करते हुए वायु में पृथ्वी और जल तत्त्व सर्व सिद्धि को देने वाले हैं और सूर्य स्वर से निकलते हुए तथा प्रवेश करते हुए वायु में पृथ्वी तथा जल तत्त्व मध्यम फलदाता हैं । यथा – ज्ञानावर्णवे :नेष्ट घटने समर्था राहु-ग्रह- काल - चन्द्र-सूर्याद्याः । - क्षिति- वरुणौ त्वमृतगतौ समस्त कल्याणदौ ॥ ४६ ॥ (३) शरीर के सर्व भाग में मानों निरन्तर अमृत बरसाती हो वैसे अभिष्ट ( मनवांछित ) कार्य को सूचित करने वाली बांई नाड़ी ( चन्द्र स्वर ) को अमृतमय माना हुआ है । वैसे ही दाई नाड़ी ( सूर्य स्वर ) चलती हुई शांति कार्यों को नष्ट करने वाली तथा अनिष्ट सूचक है । तथा ज्ञानार्णवे अमृते प्रवहति नूनं केचित्प्रवदन्ति सूरयोऽत्यर्धम् । जीवन्ति विषासक्ता म्रियते च तथान्यथा भूते ॥ १ ॥ अर्थ - अमृत जो चन्द्रमां की नाड़ी चलती हो तो निश्चय से विष से आसक्त पुरुष भी जीता है और अन्य प्रकार जो सूर्य की नाड़ी चले तो मरता है । इस प्रकार पूर्वाचार्यों ने अधिकता से कहा है । ( ४ ) सुखमना नाड़ी अनिमा और महान सिद्धियां तथा मोक्ष फल रूप कार्य करने के लिए है । (५) सगुण में जो कार्य किया जाता है उसमें बड़ा लाभ है जैसे दीपक में तेल भर कर बत्ती जलावे तो वह दीपक सन्ध्या से सवेरे तक जलता रहता है । ऐसे ही जब कहीं आग लगे तो एक लोटा जल का मंगवा कर आग़ की तरफ मुंह करके एकदम में नाक के द्वारा सगुण से साथ चढ़ावें तो [ree अग्नि आगे नहीं बढ़े, जहां की तहां शीतल हो जावे । [ देखें टिप्पणी ५६ ] (६) तथा किसी वैरी से मिलाप करने की इच्छा हो तो बरतन में जल लेकर सामने नासिका के रास्ते सगुण में चढ़ाये जाया करें तो थोड़े ही दिनों में बैरी के चित्त से वैर भाव जाता रहे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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