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Ha] सम्यग दर्शन, ज्ञान, चरित्र तीनों की साधनासे दुःखों का अंत होता है।
शयन दिसा सूरज विषय, करिये निस दिन मीत ॥ ३४७ ॥ .. दिवस चंद सुर संचरे, निशा चलावे सूर ।।
स्वर अभ्यास ऐसो करत, होय उमर भरपूर ॥ ३४८ ॥ अर्थ-दाहिने [सूर्य] स्वर में भोजन करना चाहिए, बांयें [चंद्र] स्वर में पानी पीना चाहिए। तथा बांई करवट सोना चाहिए। ऐसा करने से शरीर निरोग रहता है-३४३ - चंद्र स्वर में भोजन करने से अथवा नारी को ऋतुदान देने से, सूर्य स्वर में पानी पीने से शरीर में रोगों की उत्पत्ति होती है-३४४ ___चंद्र स्वर में भोजन करने से अपच [बदहज़मी हो जाती है । तथा चंद्र स्वर में स्त्री से संभोग करने से शरीर का बल क्षीण हो जाता है एवं विपरीत [सूर्य] स्वर में पानी पीने से नेत्रों आदि का बल क्षीण हो जाता है-३४५ ____ यदि पांच सात दिन तक इसी प्रकार विपरीत स्वरों में उपर्युक्त कार्य करोगे तो यह बात निश्चित है कि शरीर में अवश्य ही कोई रोग अथवा पीड़ा हो जायेंगे-३४६ ___ इंगला [चंद्र] स्वर में बड़ी नीति [टट्टी] जाना चाहिए। पिंगला [सूर्य] वर में पेशाव करना तथा सोना चाहिए, उपर्युक्त आचरण सदा करते रहो-३४७
दिन में चन्द्र स्वर चले, रात को सूर्य स्वर चले इस प्रकार के अभ्यास करने से आयु लम्बी होती है अर्थात् चंद्र स्वर में दिन का उदय हो तथा सूर्य स्वर में रात्रि का उदय हो तो उसकी आयु लम्बी होगी-३४८
स्वरों का समय दोहा-कथित भाव विपरीत जो, सुर चाले तन मांहि ।
मरण निकट तस जानजो, यामें संशय नांहि ॥ ३४६ ॥
६८. स्वरों सम्बन्धी कुछ आवश्यकीय ज्ञातव्य१) वायु जब मंडल में प्रवेश करती है तो उसको जीव कहते हैं । जब मंडल में
से निकलती है तब उसको मृत्यु कहते हैं । इसलिए इन दोनों का फलज्ञानी पुरुषों ने वैसा ही कहा है । यथा-ज्ञानार्णव में
यस्मिन्न सति म्रियते जीवति सति भवति चेतना कलितः ।
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