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________________ एक अपने को जीत लेने पर सबको जीत लिया जाता है। शोभित नहीं तप बिन मुनि, जिम तप समता टार । तिम सुर ज्ञान बिना गणक, शोभत नहीं लगार ॥ ३४१ ॥ साधन बिन सुर ज्ञान को, लहे न पूरण भेद। चिदानन्द गुरुगम बिना, साधन हु तन खेद ॥ ३४२ ।। अर्थ-जिस प्रकार जल बिना तालाब प्यास को बुझाने में साधन रूप नहीं । जिस प्रकार आत्मा के बिना का शरीर मुर्दा हो जाता है, जिस प्रकार पत्तों के बिना वृक्ष शोभा नहीं पाता। जिस प्रकार देव मूर्ति के बिना मंदिर की कोई शोभा नहीं होती ; जिस प्रकार चंद्रमा के बिना रात में अन्धेरा ही अन्धेरा सर्वत्र भरा रहता है अर्थात् चंन्द्र बिना रात शोभा नहीं पाती-३४० जिस प्रकार तपस्या बिना मुनि सुशोभित नहीं होता ; जिस प्रकार समता बिना का तप आत्मा का कल्याण करने में असमर्थ रहता है ; वैसे ही स्वरोदय ज्ञान के बिना ज्योतिषी की किंचिन्मात्र भी शोभा नहीं होती-३४१ क्योंकि स्वरोदय ज्ञान को साधन किये बिना ज्योतिषी वास्तविक तथा पूर्ण भेद को नहीं जान सकता। अतः प्रत्येक गणितज्ञ ज्योतिषी को इस स्वरोदय ज्ञान को किसी स्वरोदय ज्ञान के जानकार सुयोग्य गुरु के पास रह कर सीखना चाहिए। चिदानन्द जी कहते हैं कि सुयोग्य गुरु से इसका ज्ञान प्राप्त किये बिना मात्र काय क्लेश ही है-३४२ . .. स्वर में तत्त्वों के अनुसार आरोग्य प्राप्ति दोहा—दक्षिण स्वर भोजन करे, डाबे पीवे नीर । । डाबे करवट सोवतां, होय निरोग सरीर ॥ ३४३॥ चलत चंद्र भोजन करे, अथवा नारी भोग । जल पीवे सूरज विषय, तो तन आवे रोग ॥ ३४४ ।। होय अपच भोजन करत, भोग करत बल' हीन । ' जल पीवत विपरीत इम, नेत्रादिक बल क्षीण ॥ ३४५ ॥ पांच सात दिन इनि परे, चले रीत विपरीत । ___ होय पीड़ तन में कछु, जानो धरि परतीत ॥ ३४६ ।। बहिर भूमि इंगला चलत, पिंगला में लघुनीत । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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