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आत्मा नित्य अविनाशी और शाश्वत है। चलना चाहिए तथा यदि चन्द्र स्वर चलता हो तो दो, चार, छः पाठ आदि कदम आगे धरना चाहिए । एवं वार और तिथि का भी स्वर के साथ मेल' का विचार करना चाहिए-३३३ ।
जैसे कि चन्द्र स्वर में प्रयाण करते समय बांये पग से चार कदम आगे बढ़ना चाहिए तथा उस समय वार एवं तिथियों में से चन्द्र स्वर के अनुकूल होने चाहिए । जैसे कि सोम, बुध, बृहस्पति अथवा शुक्रवार में से कोई वार हो तथा तिथि का विचार भी पहले लिख पाए हैं सो भी चंद्र की तिथि हो ऐसे योग में प्रस्थान करने से सब प्रकार की मनोकामनाएं प्राप्त होती है-३३४ ___यदि सूर्य स्वर में प्रयाण करना हो तो दाहिने पग से तीन कदम आगे बढ़ना चाहिए तथा उस दिन वार और तिथि भी सूर्य की होनी चाहिए। ऐसा योग मिलने से परदेश जाने वाले की सब प्रकार की मनोकामनाएं सिद्ध होती है-३३५ ___जो व्यक्ति स्वर का विचार करके कार्य करता है उसे तत्काल ही सफलता प्राप्त होती है। इसका तत्त्वज्ञान जो हमने यहां वर्णन किया है उसके चमत्कार का अनुभव करें-३३६
इस स्वरोदय के अनुसार विचार करके प्रस्थान करने वाले के लिए तिथि, वार, नक्षत्र, करण, योग, दिशाशूल, लक्षणपात, होरा, दग्ध तिथि तथा मूल-३३७
विष्टिकाल, कुलिका, लग्न, व्यतिपात, शुक्र अस्त, चौघड़िया, यमघट आदि ज्योतिष के कुयोगों का कोई विचार नहीं है क्योंकि स्वरोदय रूपी सूर्य के सामने सब हतप्रभ हो जाते हैं-३३८
अतः उपर्युक्त अपयोगों का स्वरोदय में कोई विचार नहीं है। ऐसे यह स्वरोदय ज्ञान किसी इस विषय के जानकार गुरु से प्राप्त करके सदा चिन्तन तथा निन करते रहना चाहिए-३३६
स्वरोदय ज्ञान बिना ज्योतिषी दोहा-विगत उदक सर हंस बिन काया तरु बिन पात।
देव रहित देवल' यथा, चंद्र बिना जिम रात ॥ ३४० ॥
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