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________________ 2001 श्रमण की सभी चेष्टाएं संयम हेतु होती हैं। पूरब उत्तर दिशि विषय, भानु जोग बलबन्त । छितदायक कहत हैं, जो स्वरवेदी सन्त ॥ ३१ ॥ विदिशि अपनी-अपनी अपने घर में लीन । , शुभ अरु इतर उभय विषय समझ लेहु परवीन ।। ३२० ।। चलत चन्द नवि जाइये, पूरब उत्तर देश । गया न पीछे बाहुड़े, अथवा लहे क्लेश || ३२१ ।। दक्षिण पश्चिम मत चलो, भानु जोग में कोय | इष्टार्थनाशविभ्रमस्वपद भ्रं शास्तथा महायुद्धम् । दुःखं च पञ्चदिवसैः क्रमशः संजायते त्वपरैः ॥ ४२ ॥ अर्थ - पवन प्रथम दिवस में विपरीत बहे तो चित्त को उद्वेग होता है और दूसरे दिन विपरीत बहे तो धन की हानि को सूचित करता है । तीसरे दिन विपरीत बहे तो परदेश गमन कराता है - ४१ यदि पांच दिन तक विपरीत चले तो क्रम से इष्ट प्रयोजन का नाश, विभ्रम, अपने पद से भ्रष्ट होना, महायुद्ध शौर दुःख ये पांच फल होते हैं तथा इसी प्रकार अगले पांच-पांच दिन का फल विपरीत अर्थात् अशुभ जानना - ४२ ४ - भूतादि सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर स्वरोदय से भूतादिगृहीतानां रोगार्त्तानां च सर्प- द्रष्टानाम् । पूर्वोक्त एव च विधिर्बोद्धव्यो मान्त्रिकावश्यम ।। ५० ।। (ज्ञानार्णवे ) अर्थ - यदि मंत्रवादीको दूत आकर पूछे कि अमुक भूतादि से गृहीत है तथा अमुक रोग से पीड़ित है, सर्प ने काटा है तो पूर्वोक्त विधिही जानी। यह आवश्यक है कि सम अक्षर वाले का बाईं नाड़ी के चलते हुए पूछना शुभ है और विषमाक्षर वाले का दाहिनी बहती हुई नाड़ी में पूछना शुभ है - ५० ५ – ग्राम, पुर, युद्ध, देश, गृह प्रवेश में तथा राजकुलादि में प्रवेश समय अथवा निकलते समय जिस तरफ के नासिका छिद्र में से पवन बहता हो उस तरफ के पग को श्रागे रखकर चलने से इच्छित फल की प्राप्ति होती है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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