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________________ जीवन और रूप बिजली की भांति अस्थिर हैं । परदेश गमन समय स्वरों में तत्वों का विचार दोहा — करत गवन परदेश में, ताका कहूं विचार ।। ३१७।। दक्षिण पश्चिम दिशि विषय, चन्द्र योग में जाय । गमन रहे परदेश में, सुख विलसे घर प्राय || ३१८ || तत्त्व में प्रश्न किया जावे तो मन इच्छित वर्षा हो । पवन मंडल में बादलों से दिन हो (बादल तो घिरें किन्तु वर्षा न हो ) अग्नि तत्त्व में थोड़ी-सी वृष्टि हो । ज्ञानार्णव प्र० २६ में कहा है कि : वर्षति भौमे मघवा वरुणेऽभिमतो मतस्तथाजस्रम् । दुर्दिन घनाश्च पवने, वन्हौ वृष्टिः कियन्मात्रा ।। ५८ ।। अर्थ - पृथ्वी तत्त्व में मेघ बरसना कहे । जल तत्त्व में मनोवांछित वर्षा निरन्तर होगी ऐसा कहे । वायु तत्व में दुर्दिन होगा, बादल होगा पर बरसेगा नहीं तथा प्रति तत्त्व में किचिन्मात्र वृष्टि होना कहे – ५८ (२) धान्य प्राप्ति के सम्बन्ध में प्रश्न धान्य प्राप्ति के सम्बन्ध में जल तत्त्व में प्रश्न करे तो धान्य प्राप्त हो । पृथ्वी तत्त्व में बहुत सरस धान्य प्राप्त हो । पवन तत्त्व में किसी स्थान में धान्य हो किसी स्थान में न हो । अग्नि तत्त्व में थोड़ा भी अन्न न हो । ज्ञानार्णव प्र० २६ में कहा है कि - सस्यानां निष्पत्तिः स्याद्वरुणे पार्थिव च सुश्लाघ्या । स्वल्पापि न चाग्नेये वायवाकाशे तु मध्यस्था ||५|| अर्थ – कोई मनुष्य अनाज उत्पन्न होने का प्रश्न करे तो पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व में धान्य की उत्पत्ति अच्छी होगी । अग्नि तत्त्व में स्वल्प अनाज भी न हो । वायु तत्त्व और आकाश तत्त्व में मध्यस्थ हो - ५६ (३) विपरीत पवन बहने के विषय में - ज्ञानार्णव प्र० २६ में कहा है कि - [ee व्यस्तः प्रथमे दिवसे चित्तोद्वे गाय जायते पवनः । धन हानिकृद् द्वितीये प्रवासदः स्यात्तूतीयेऽन्हि ॥ ४१ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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