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जरा से त्रस्त संसार मृत्यु से पीड़ित हो रहा है। अपने सुर जल तत्त्व में, शत्रु कुं नहीं होय ।
रिपु मरण निज हाथ थी, विजय अपनी होय ॥२८॥ अर्थ-(१) अपने पूर्ण स्वर में चलते समय यदि स्वर में संगाति तत्त्व आदि हों तो समझ लेना चाहिए कि यह योग अति प्रबल है । उस समय युद्ध के लिए चढ़ाई कर देने से चढ़ाई करने वाले को अवश्य ही सुखपूर्वक विजय प्राप्त हो-२८८
यदि अपने स्वर में जल तत्त्व हो और शत्रु के न हो तो युद्ध के लिए चढ़ाई कर देने पर शत्रु को अपने हाथों से मार कर विजय प्राप्त होगी-२८६.
गर्भ६२ सम्बन्धी प्रश्न विचार दोहा-गर्भ तणा प्रसंग अब, सुनना , चित्त लगाय। __ स्वर विचार तासु कहो, जो कोई पूछे आय ॥२६॥
क्लीव कन्यका सुत जनम, गर्भ पतन वा धार ।
दीर्घ अल्प आयु तणा, भाखो एम विचार ॥२६१॥ ६२--गर्भ सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर देने से पहले इस बात का निश्चय कर लेना चाहिए कि गर्भ है या नहीं :
बन्ध अोर जो आय करि, है पूछे जो कोय।
बन्ध ओर तो गर्भ है, बहते स्वर नहीं होय। (चरणदास) अर्थ-~-पृच्छक यदि चलते स्वर की तरफ आकर प्रश्न करे तो स्त्री के गर्भ नहीं है । यदि बन्द स्वर की तरफ से आकर प्रश्न करे तो गर्भ है।
वरुण-महेन्द्रौ शस्तौ प्रश्ने गर्भस्य पुत्रदो ज्ञेयौ । इतरी स्त्री-जन्मकरौ शून्यं गर्भस्थ नाशाय ॥६४॥ नासा प्रवाह दिग्भागे गर्भार्थं यस्तु पृच्छति । पुरुषः . पुरुषादेशं शून्यभागे तथांगना ॥६५।। विज्ञेयः सन्मुखे षण्डः सुषुम्नायामुभौ शिशू । गर्भहानिस्तु संक्रान्तौ समे क्षेमं विनिर्दिशत् ॥६६॥ (ज्ञानार्णवे) अर्थ-जल तथा पृथ्वी इन दोनों तत्त्वों में प्रश्न हो तो पुत्र जन्मेगा।
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