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सच्चा साधु दर्पण की भांति निर्मल होता है। 'लैवे उसकी जय हो, इसमें संशय नहीं-२८२
युद्ध में घायल सम्बन्धी प्रश्न दोहा-रण में जो घायल हुए, तेहनी पूछे बात।
चिदानन्द ते पुरुष कुं, उत्तर एम कहात ॥२८३॥ अपनी दिशा से आयके, पूछ पूरण मांहि। जास नाम कहे तास सुन, घाव जानजो नांहि ॥२८॥ पूछे खाली सुर विषय, घायल' का परसंग। जस पूछे तस रण विषय, घाव कहिजे अंग ॥२८५।। पृथ्वी उदर बताइये, जल चलता पग जान । पावक उर हिरदय विषय, वायु जंघा बखान ॥२८६।। घाव शीश में जानजो, चलत तत्त्व आकाश ।
सुर में तत्त्व विचार के, पृच्छक • इम भाष ॥२८७॥ अर्थ-यदि कोई युद्ध में घायल होने वाले व्यक्ति के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे तो उसे इस प्रकार उत्तर देना चाहिए-२८३ .
(१) पूर्ण दिशा में आकर पूर्ण दिशा में ही जिस घायल के लिए प्रश्न करे उस घायल को कोई घाव नहीं है । ऐसा कह देना चाहिए-२८४ - (२) खाली स्वर की तरफ घायल का नाम लेकर प्रश्न करे तो कह देना चाहिए कि घायल के शरीर में घाव है-२८५
(३) यदि पृथ्वी तत्त्व में प्रश्न करे तो पेट ये घाव है ! यदि जल-तत्त्व में प्रश्न करे तो पग में घाव है। यदि अग्नि तत्त्व में प्रश्न करे तो छाती तथा हृदय में घाव है । यदि वायु तत्त्व में प्रश्न करे तो जांघ में घाव है । ऐसा कह देना चाहिए-२८६ । ।
(४) यदि आकाश तत्त्व में प्रश्न करे तो घायल को सिर में घाव है । स्वर के तत्त्व को पहचान कर प्रश्न कर्ता को इस प्रकार उत्तर देना चाहिए-२८७
. युद्ध करते समय तत्त्व विचार दोहा-पूरण प्राण प्रवाह में, निज तत घर सुर होय । - प्रबल गयो आन मिला, सुख से जय ले . सोय ॥२८८॥
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