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________________ SAK दूसरोंको कष्ट पहुंचाकर जिसे. पश्चाताप न हो वह महानिर्दयी प्रश्न पयाण जुध करे, अनिल तत्त्व में कोय । निश्चय थी संग्राम में, भागे पहला सोय ॥२७॥ व्योम बहत कोऊ भूपति, करे प्रश्न परियाण । अथवा युद्ध तिण अवसरे, करत मरण तस जान ॥२८०॥ चन्द्र चलत भूपति मरण, सम जोधा रवि माहि। . वायु बहत भाजे कटक, संशय करजो नांहि ॥२८१॥ . नाम ध्येय सदृश कही, पूछे पूरण मांहि। प्रथम नाम जस उच्चरे, तस जय संशय नांहि ॥२८२॥ अर्थ-(१) यदि पृथ्वी तत्त्व में कोई युद्ध के लिए प्रश्न करे अथवा युद्ध के प्रयाण के लिए प्रश्न करे या प्रयाण करे तो कह देना चाहिए कि दोनों दल बराबर रहेंगे-२७५ (२) यदि प्रश्न' कर्ता युद्ध में जाने के लिए प्रश्न पूछे और उत्तर देने वाले के स्वर में जल तत्त्व चलता हो तो कह देना चाहिए कि दोनों दलों में सन्धि होगी-२७६ - (३) पृथ्वी तत्त्व अथवा जल तत्त्व का एक को उदय हो और दूसरे को उदय न हो तो जिसका उदय हो उसकी जीत हो इसमें सन्देह नहीं-२७७ . (४) युद्ध के लिए प्रश्न करे, लड़ाई करे अथवा प्रयाण करे उस समय यदि अग्नि तत्त्व बहता हो तो उसकी युद्ध में अवश्य हार हो-२७८ (५) यदि वायु तत्त्व में कोई युद्ध के लिए प्रश्न करे, लड़ाई करे अथवा युद्ध के लिए प्रयाण करे तो उसे युद्ध में हार कर भागना पड़ेगा-२७६ (६) आकाश तत्त्व में कोई राजा युद्ध के लिए प्रश्न करे, लड़ाई करे अथवा युद्ध के लिए प्रयाण करे तो युद्ध में उस राजा की मृत्यु होगी-२८० (७) चन्द्र स्वर चलते समय युद्ध सम्बन्धी प्रश्न करे, लड़ाई करे अथवा प्रयाण करे तो राजा की मृत्यु हो । सूर्य स्वर में यदि वायु तत्त्व बहता हो तो बराबर के योद्धा होते हुए भी प्रश्नादि कर्ता की सेना हार खाकर भाग जावे । इसमें संशय नहीं है-२८१ ।। (८) पूर्ण नाड़ी में दोनों के नाम लेकर प्रश्न करे तो जिसका पहले नाम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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