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विशुद्ध भाव ही जीवन की सुगन्ध है ।
चन्द्र चलत पूछे कोउ, पूरण दिशि में आय । गर्भवती के गर्भ में, तो कन्या कहवाय ||२२|| दिवसपति पूरण चलत, पूछे पूरण मांहि । पुत्र कूख में जानजो, या में संशय नांहि ॥ २६३ ॥ सुर सुखमन में प्राय के, पूछे गर्भ विचार । नारी केरी कूख में, गर्भ नपुंसक धार ॥२९४॥ भानु चलत पूछे कोउ, वाकुं चन्दा होय । पुत्र जन्म तो जानजो, फुनि जीवे नहि सोय ॥२६५॥ दिवसपति संचार में, करे प्रश्न कोउ प्राय ।
सुर सूरज वाकुं हुआ, सुखदायक सुत थाय ॥ २६६ ॥ करे प्रश्न शशि सुर विषय, वाकुं जो रवि होय | होय सुता जीवे नहीं, कहो एम तस जोय ॥ २६७॥ चन्द्र चलत नवी कहे, वाकुं चन्दा उद्योत । कन्या निश्चय तेह ने, दीर्घ स्थिति धर होत ॥ २६८ ॥ चलते मही सुत जानजो, प्रश्न करे तिन वार । राजमान सुखिया घना, रूपे देव कुमार || २६६ ।। उदक तत्त्व में आय के, करे प्रश्न जो कोय । सुत सुखिया धनवन्त तस, षट् रस भोगी होय || ३०० ||
श्रग्निः तथा वायु तत्त्व में प्रश्न हो तो कन्या होगी । खाली स्वर में प्रश्न हो तो गर्भ नष्ट हो जाएगा - ६४
जिस तरफ का स्वर चलता हो उसी तरफ होकर प्रश्न करे और वह प्रश्न करने वाला पुरुष हो तो पुत्र हो तथा खाली स्वर की तरफ होकर प्रश्न करे तो पुत्री हो—६५
यदि सन्मुख होकर प्रश्न करे तो नपुंसक सन्तान होगी ऐसा कहे । तथा दोनों स्वर पूर्ण भरे हों तो दो बालक होना कहे । पवन के पलटने के समय पूछे तो गर्भ की हानि हो और दोनों तरफ पवन सम बहती हुई में पूछे तो क्षेम कुशल कहे - ६६
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