SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञान से संचित कर्मों का रिक्त करना ही सदाचार है। अर्थ - प्रकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, और जल से पृथ्वी 'तत्त्व का प्रकाश होता है – २५९ तत्त्वों में गुणों की उत्पत्ति दोहा - क्रोधादिक अग्नि उदय, इच्छा वायु मंभार । क्षान्त्यादिक गुरण मन विषय, जल भू मांहि विचार ॥ २६० ॥ - अर्थ — अग्नि तत्त्व में क्रोध का उदय, वायु तत्त्व में इच्छा का उदय, जल पृथ्वी तत्त्व में क्षमादि दस प्रकार के यति धर्म रूप दस गुणों की उत्पत्ति होती है - २६० तत्त्वों के द्वार दोहा - गुदा द्वार धरती तरगो, लिंग उदक नो जान । तेज द्वार चक्ष सुधी, वायु धारण बखान || २६१॥ श्रवण द्वार नभ का कह्या शब्दादिक आहार । चिदानन्द इन पांच को, जानो उर निहार ॥। २६२॥ अर्थ — पृथ्वी तत्व का द्वार गुदा है, जल तत्त्व का द्वार लिंग है, अग्नितत्त्व का द्वार नेत्र है, वायु तत्त्व का द्वार नासिका है—२६१ आकाश तत्त्व का द्वार कान है, इनके शब्दादिक आहार हैं । चिदानन्द जी महाराज कहते हैं कि इनको अपने मन में चिन्तन करो - २६२ युद्ध के लिए प्रस्थान दोहा - चन्द्र" चलत नहीं चालिए, युद्ध करन कुं मीत । चलत चन्द में तेहना, शत्रु की होय जीत ॥ २६३ ॥ ५८ - दस प्रकार के यति धर्म -- क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य । ५६ - घोरतरः संग्रामो हुताशने, मारुति भंग एव स्यात् । गगने सैन्य विनाशं मृत्युर्वा युद्ध पृच्छायाम् ॥५६॥ ऐन्द्रे विजयः समरे ततोऽधिको वाञ्छितश्च वरुणे स्यात् । सन्धिर्वा रिपुंभंगात्स्वसिद्धिसंसूचनोपेतः ॥५७॥ | Jain Education International For Personal & Private Use Only ( ज्ञानार्णवे ) www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy