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सद्गृहस्थ घर में रहता हुआ भी सुव्रती ( मुनि) तुल्य होता है ।
जैसा रस आस्वाद की, होय प्रीत मन मांहि । तैसा तत्त्व पिछानिये, शंका करजो नांहि ॥ २५४ ॥
थ - पृथ्वी तत्त्व में मधुर, जल तत्त्व में कसायला, वायु तत्त्व में तीखा, अग्नि तत्त्व में खारा, तथा आकाश तत्त्व में कड़वा स्वाद की चाह होती है । यहां पर पांचों तत्त्वों के रस अनुक्रम से बतला दिये गये हैं- २५३
जिस समय जैसे रस के स्वाद की इच्छा मन में हो उस समय उसी तत्त्व को स्वर में समझना चाहिए । इसमें जरा भी शंका को स्थान नहीं है -२५४ तत्वों में नक्षत्र
दोहा - श्रवरण धनिष्टा रोहिणी, उत्तराषाढ़ा भीच ।
ज्येष्ठा अनुराधा सप्त, श्रेष्ठ मही के बीच ॥ २५५ ।। मूल उत्तरा भाद्रपद, रेवती आद्रा जान । पूर्वाषाढ़ अरु शतभिषा, अश्लेषा जल ठान ॥ २५६ ॥ मघा पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वा भाद्रपद स्वात । कृतिका भरणी पुष्य ये, सप्त अग्नि विख्यात ॥ २५७॥ हस्त विशाखा मृगशिरा, पुनरवसु चित्राय । उत्तराफाल्गुण अश्विनी, अनिल धाम सुखदायः ।। २५८ ।।
अर्थ – १. श्रवण, धनिष्टा, रोहिणी, उत्तराषाढ़ा, अभिजित, ज्येष्ठा, और अनुराधा ये सात नक्षत्र पृथ्वी तत्त्व के हैं तथा शुभ फलदायी हैं— २५५ २. मूल, उत्तरा भाद्रपद, रेवती, आर्द्रा, पूर्वाषाढ़ा, शतभिषा और अश्लेषा ये सात नक्षत्र जल तत्त्व के हैं— २५६
३. मघा, पूर्वाफाल्गुणी, पूर्वाभाद्रपद, स्वाति, कृतिका, भरणी और पुष्य ये सात नक्षत्र अग्नि तत्त्व के हैं -- २५७
४. हस्त, विशाखा, मृगशिरा, पुनरवसु, चित्रा, उत्तराफाल्गुणी और अश्विनी ये सात नक्षत्र वायु तत्व के हैं - २५८
स्वरों में तत्त्वों का क्रम
दोहा - नभ थी पवन - पवन थकी पावक तत परकास । पावक थी पानी लखो, मही लखो फुनि तास ॥। २५६।।
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