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________________ अहिंसा सह दूसरा धर्म नहीं है। बुध पृथ्वी जल को शशि, शुक्र अग्निपति मीत । वायु गुरु सुर चन्द में, तत्त्व स्वामि इन रीत ॥ २४८॥ स्वामी अपनो आपनो, अपने घर के मांहि । शुभ फलदायक जानजो, या में संशय नांहि ॥ २४६॥ अर्थ - रवि, राहु, मंगल और शनि ये चार सूर्य स्वर के तत्त्वों के स्वामी हैं । श्रर्थात् पृथ्वी तत्त्व का स्वामी रवि है जल तत्त्व और वायु तत्व का स्वामी राहु है । अग्नि तत्व का स्वामी मंगल है | तथा आकाश तत्त्व का स्वामी शनि है—२४७ पृथ्वी तत्त्व का स्वामी बुध जल तत्त्व का स्वामी चन्द्र, अग्नि तत्त्व का स्वामी शुक्र, और वायु तत्त्व का स्वामी गुरु है - २४८ इसलिए अपने-अपने तत्त्वों में ये ग्रह अथवा वार शुभ फलदाता है – २४६ चन्द्र स्वर की अवस्थाए दोहा- -जय तुष्टि पुष्टि रति क्रीड़ा हास्य कहाय । इम अवस्था चन्द्र की षट् जल भू में थाय ॥। २५० ।। , ज्वर निद्रा प्रयास फुन, कम्प चतुर्थ पिछान | वदे अवस्था चन्दकी, वायु अग्नि में जान || २५१।। प्रथम गतायु दूसरी मृत्यु नभ के संग | कही अवस्था चन्दकी, द्वादश एम अभंग ।। २५२ ॥ अर्थ – जय, में पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व में होती हैं - २५० ज्वर, निन्द्रा, परिश्रम और कम्पन जब चन्द्र स्वर में वायु तत्त्व अथवा अग्नि तत्त्व चलता हो उस समय शरीर में ये चार अवस्थाएं होती हैं - २५१ जब चन्द्र स्वर में आकाश तत्त्व चलता है तब आयु का क्षय और मृत्यु होती है। पांचों तत्त्वों में कुल मिलाकर ये बारह अवस्थाएं चन्द्र की होती हैं—२५२ तुष्टि, पुष्टि, रति, खेलकूद, हास्य ये छ: अवस्थाएं चन्द्र स्वर पांच रसों की तत्त्वों द्वारा पहचान दोहा - मधुर कसायल तिक्त फुन, खारा रस कहवाय । नभ कटुक रस पंच के, अनुक्रम दिये वताय ॥ २५३ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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