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________________ पुत्र, पुत्री, स्वी, नौकर को सिर पर मत चढ़ाइये । प्रकाशकीय हर्षका विषय है कि आज हम अष्टांग निमित्तका चौथा विभाग स्वर विज्ञान पुस्तक पाठकों के कर कमलों में समर्पित कर रहे हैं। इसके पहले तीन विभाग-१-शकुन विज्ञान, २-स्वप्न विज्ञान तथा ३–प्रश्न पृच्छा विज्ञान प्रकाशित हो चुके हैं। ४-स्वर विज्ञान भी पाठकों के हाथ में है । अष्टांग निमित्त के ये सभी विभागों के प्रस्तुत कर्ता व्याख्यान दिवाकर, विद्याभूषण, न्यायतीर्थ, न्यायमनीषी, स्नातक, चतुर्थ व्रतधारी जैन श्रावक श्रद्धेय पंडित श्री हीरालाल जी साहब दूगड़ एक प्रतिभाशाली विद्वान हैं। आपने तीस वर्षों के सतत-अनथक तथा कठोर परिश्रम से अनेक प्राचीन ग्रंथ भंडारों में जाकर वहां सुरक्षित हस्तलिखित पांडुलिपियों से दोहकर इस ग्रंथरत्न का संकलन किया है और इसको अर्थ-विवेचन-टिप्पणियों से सरल एवं सुरुचिकर बनाने में कोई कसर नहीं उठा रखी। सच पूछो तो अष्टांग निमित्त के ये चारों विभाग अपने विषय के अनूठे एवं अनूपम संग्रह हैं । इन विभागों में कितना वृहत संग्रह हैं पाठक इन ग्रंथों की विषयानुक्रमाणिका से ही जान लेंगे और इनके पठन पाठन से इस विषय की महानतातथा गंभीरता उपयोगिता का परिचय पा लेंगे । सच बात तो यह है कि अनेक पूर्वचार्यों द्वारा रचित अनेक प्राचीन ग्रन्थों के दोहन रूप नवनीत को विद्वान लेखक ने सागर को गागर में बन्द कर हिन्दी जगत की महान सेबा की है। हम सब आपका जितना भी आभार मानें उतना ही थोड़ा है । मात्र इतना ही नहीं अपितु विद्वान् लेखक ने सत्तर वर्ष की वृद्धावस्था में लगातार सात-आठ महीने दक्षिण भारत में कठिन परिश्रम पूर्वक भ्रमण करके इन ग्रन्थों के अग्रिम ग्राहक बनाने के लिए भगीरथ प्रयत्न भी किया है । मान-अपमान की परवाह किये बिना घर-घर, दुकान-दुकान (door to door) नगर-नगर में जा-जाकर जैन साहित्य के प्रचार में वीर सेनानी की तरह कटिबद्ध हो रात-दिन एक करके जैन शासन की पूरी लगन से सेवा की है। यदि सच पूछा जाय तो कृषगात्र में एक कर्मठ युवक की आत्मा काम. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004078
Book TitleSwaroday Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1973
Total Pages354
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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