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भूख से अधिक न खावें, नाचान दोस्त से दाना दुश्मन मकान
· कर रही है । आपके उत्साह और परिश्रम को देख कर हम मद्गद् हो जाते हैं । इतने उच्चकोटि के विद्वान होते हुई भी आपको अभिमान छू नहीं पाया । जैन साहित्य के प्रचार की लगन आप के रोम-रोम में समाई हुई है।
अष्टांग निमित्त में १–अंग विद्या, २ स्वर विद्या, ३–लक्षण विद्या, ४-व्यंजन विद्या, ५-स्वप्न विद्या, ६-उत्पात विद्या, ७-भौम-विद्या ८–अन्तरीक्षत विद्या । (ज्योतिष विद्या) इन आठ विद्याओं का समावेश. है। इनकी विषय सारिणी को संक्षिप्त परिचय में दुग्गड़ जी ने स्वयं स्वप्न विज्ञान में अपने विशेष वक्तव्य में दे दिया है उससे पाठक महोदय इसकी - उपयोगिता का महत्त्व समझ जावेंगे। - अष्टांग निमित्त के आठ अंगों में से इन प्रकाशित चार विभागों में पांच अंगों का समावेश हो जाता है। बाकी के तीन अंगों में से सामुद्रिकहस्तरेखा, स्त्री-पुरुषों के शारीरिक लक्षणों द्वारा तत्सम्बन्धी परिचय का वृहत्संग्रह भी तैयार हो चुका है। तथा अन्तरिक्ष, व्यंजन, उत्पात विद्याओं पर अभी लिखना बाकी है । दुग्गड़ जी से हमारी विनम्र प्रार्थना है कि इन बाकी विद्याओं को भी शीघ्र लिखने की कृपा करें जिससे अष्टांग निमित्त के आठों अंग प्रकाशित होकर जन समाज को लाभ प्राप्त हो सके।
श्रेयांसि बहुविघ्नानि हम चाहते थे कि ये तीनों विभाग शीघ्राति-शीघ्र प्रकाशित हो जाते, परन्तु जिस प्रेस में पुस्तकें छपने के लिये दी थीं उसमें अचानक आग लग जाने से छपने के लिये दिया हुआ सब कागज स्वप्न विज्ञान की प्रेस कापी तथा छपे हुए फर्मे जलकर राख हो गए।
१-श्री दूगड़ जी की आंखों का आपरेशन ठीक हो गया, चश्मा लग जाने के बाद श्री दूगड़ जी ने स्वप्न विज्ञान पर लिखे हुए रफ नोट्स से बड़े .. परिश्रम तथा सावधानी पूर्वक प्रेस कापी फिर तैयार की और इसे छपने के लिए दूसरे प्रेस में दे दिया गया।
नया कागज खरीदने के लिये भी बहुत परेशानी हुई। १–अतिवृष्टि, २-रेलों की हड़तालें, साथ ही सरकार की कागज (Export) नीति के
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