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________________ . जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा दटुं सम्बुद्धो रकिखओ य................ * इसका अर्थ सभी स्थानकवासी संत जिन मूर्ति की बात आयी इसलिए असत्य-गलत करते हैं - वे ऐसा लिखते हैं कि - "अभयकुमार ने अनार्य देशस्थ अपने पिता के मित्र अनार्य नरेश के राजकुमार आर्द्रक को धर्मप्रेमी बनाने के लिए धर्मोपकरण की भेंट भेजी ।" । आ० हस्तीमलजी जैनधर्म का मौलिक इतिहास-खंड-१, - पृ.३० पृ. ७१ पर डोशीजी ज्ञानसुंदरजी के "भगवान् महावीर ने श्रेणिक के मूर्तिपूजा का विरोध नहीं किया इसलिये भगवान् मूर्तिपूजा से सहमत थे" इस तर्क का खंडन करते कहते हैं "जब श्रेणिक मर्तिपूजक नहीं. तो फिर भगवान् मूर्तिपूजा से उसे रोके किस प्रकार ?' खारवेल शिलालेख से निकली कलिंग जिनप्रतिमा से भारतीय और विदेशी सभी विद्वानों को इसकी तसल्ली हो गई है कि श्रेणिक मूर्तिपूजक था दूसरी बात, सूर्याभदेव-विजयदेव इत्यादि देव और अनेक इंद्र जो परमात्मा के भक्त हैं और मूर्तिपूजक हैं - उसे सूत्र बता रहे हैं, उनको परमात्माने क्यों नही रोका, उनके आगे मूर्तिपूजा के पाप का उपदेश क्यों नही दिया ? इस बारे में डोशीजी ने विचार ही नही किया ? संस्कृत के अनभिज्ञ लोगों को डोशीजी प्रतिमाशतक का श्लोक देकर भ्रमित कर रहे है । उनमें उपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी म. ने स्पष्ट कहा है 'प्रतिमार्चनादि गुणकृत् मौनेन संमन्यते' इस श्लोक का अर्थ प्रभु सावद्य होने से साक्षात् आदेश नही देते हैं कितु मौन से उसकी सम्मति देते हैसमर्थन करते है। तो ज्ञानसुंदरजी म. ने जो बात कही, वही बात उपाध्यायजी म.ने कही है । विरोध कहाँ पर है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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