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________________ . जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा १०. श्रेणिक और मूर्तिपूजा → समीक्षा इस प्रकरण में ज्ञानसुंदरजी ने बताए खंडगिरि-उदयगिरि शिलालेख की बातों को तो डोशीजी खा गए है। जिस लेख का विदेश और भारतीय विद्वान् पुरातत्वज्ञो ने १०० साल तक पूर्ण परिश्रम करके सर्वमान्य निर्णय करके निष्कर्ष निकाला जिसको देखकर विद्वान पुरातत्वज्ञ बडे प्रसन्न हुए, उस लेख की बाते जिस हिमवंत पट्टावली में है, अन्यत्र अनुपलब्ध दूसरी भी चंद्रगुप्त-सेल्युकस इत्यादि की बातें जो इतिहास ने प्रमाणित की हैं, ऐसी बातें जिस पट्टावली में हैं उस विद्वत्सभा में आदरपात्र प्रामाणिक पट्रावली के लिए डोशीजी लिखते है- "मूर्तिपूजकों में ही आदरपात्र और प्राचीन मानी जाती होगी ?" मताग्रह से खुद को भान ही नही कि विद्वानों को अप्रमाण करने जाते खुद का मत ही अप्रमाण काल्पनिक सिद्ध होता है । ___ जैसे सूत्र प्रमाण हैं वैसे सूत्रसंवादि दूसरे ग्रंथ-पट्टावलियाँ भी प्रमाण ही हैं । नंदिसूत्र में जिनका नाम है उन्हीं हिमवदाचार्य की पट्टावली अप्रमाण करने जाते तो आप सूत्र को ही अप्रमाण करते हो। ऐसे भी सूत्र के प्रामाणिकता की केवल बाते ही आप करते हैं जगह-जगह पर सूत्रों में मूर्तिपूजा की बाते आती हैं उनको अप्रमाण करके - अर्थ बदलने की चेष्टा करके वस्तुतः सूत्र को ही आप अप्रमाण कोटी में ले जा रहे हो । सूत्र में सभी वस्तु नहीं बताई जाती 'सूचनात् सूत्रम्' अनेक जगह पर केवल सूचन ही करते हैं । जैसे "सुवर्णगुलिका" प्रश्नव्याकरण में । उसका संदर्भ दूसरी जगह से ही प्राप्त होता है, उसको भी प्रामाणिक ही मानना चाहिए । नहीं मानो तो आप के मत में सूत्र का भी वास्तविक अर्थ-ज्ञान का अभावअधूरा ज्ञान ही सिद्ध होगा। क्योंकि स्थानकवासी पंथ ४००-५०० वर्ष से निकला हैं, अतः विशुद्ध परंपरा तो उनके पास हैं ही नही । मूर्तिपूजक के ग्रंथ-नियुक्ति-भाष्य-चूर्णि-टीका को ही आधारभूत गिनकर अर्थ करते हैं। उसी को मूर्ति की बात आने पर भांडते हैं । “निंदामि पिबामि च" न्याय का अनुसरण करते हैं, जो मध्यस्थ पर्षदा में हास्यास्पद है । श्रेणिक नरकगामी है, मूर्तिपूजा का फल स्वर्ग बताते है इत्यादि निरर्थक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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