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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा ९. भरतेश्वर के मूर्ति निर्माण की असत्यता ९१ समीक्षा इसमें डोशीजी के तस्करवृत्ति का दर्शन होता है । मूलसूत्र की बाँगे लगानेवाले डोशीजी और इनके अनुयायी मूलसूत्र में नहीं हैं, ऐसी सैंकड़ों चरित्र कथाएँ इत्यादि सभी पूर्वाचार्यों के रचे हुए " त्रिषष्ठिशलाकापुरूष चरित्र" इत्यादि अनेक ग्रंथो से लेते हैं उनके आधार पर ही साहित्यरचना करते हैं और उन्ही में जब मूर्तिपूजा तीर्थ आदि का जिक्र आता है तो खुद पकडे हुए कुमताग्रह से उन्हीं को " केवल औपन्यासिक ढ़ंग के कहानी ग्रंथ”, “पौराणिक-गपोडा" जैसे शब्दों का प्रयोग कर बदनाम करते हैं 1 इसके लिये इन्हीं के पूर्वाचार्य जवाहरलालजी महाराज के शब्द हम यहाँ पर उद्धृत करते हैं। वे भी ऐसी वृत्ति को क्या मानते हैं वह मध्यस्थ व्यक्ति समझ सकेंगे- ‘“चूर्णि (ग्रंथो) की आधी बात को मानना और आधी बात को नहीं मानना यह दुराग्रह के सिवाय और कुछ नहीं है" सद्धर्ममंडन पृष्ठ ३६८ आगम में भी उत्तराध्ययनं - १०वां अध्ययन निर्युक्ति में गौतमस्वामीजी के अष्टापदयात्रा की बात की है "पडिमाओं वंदइ जिणाण" ||२९१॥ स्पष्ट है वह भी वहाँ पर मंदिर है तभी संभव है । भगवतीसूत्र शतक १४ उद्देशा ७ में गौतमस्वामी को प्रभु महावीर "चिरसंसिट्टोऽसिगोयमा चिरसंधुओऽसि गोयमा !. ." से जो आश्वासन देते है, वह बात और उसी प्रकार के शब्द उत्तराध्ययन निर्युक्ति में है । भगवतीसूत्र के उस सूत्र का संबंध और सही अर्थ उत्तराध्ययनिर्युक्ति- टीका को माने बिना बैठेगा ही नही ! उत्तराध्ययन टीका में स्पष्ट कहा है अष्टापद यात्रा के पश्चात् तापसों की दीक्षा के बाद समवसरण में प्रभु के पास आने पर, तापसों को केवलज्ञान हुआ है, यह जानकारी गौतमस्वामीजी को हुई । तब मुझे कब केवलज्ञान होगा यह बड़ी चिंता गौतमस्वामीजी को हुई । उनको आश्वासन के लिये प्रभु ने यह बात कही । पाठक समझ सकते है कि भरतेश्वर के अष्टापद मूर्ति-निर्माणादि माने बिना मूलसूत्र का संबंध अर्थ ही नहीं बैठ सकता । पूर्वचार्यों के ग्रंथो को 'पौराणिक गपोडे' आदि अभद्र शब्दों से बदनाम करके परमात्मा के आगम की आशातना का महापाप बाँध रहे है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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