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________________ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा ६७ पूजा को ही अनादि मानकर अन्य शिव, कृष्ण, राम, बुद्ध आदि की मूर्ति-पूजा की सादि कहें ? और जैनियों की मूर्ति-पूजा में धर्म और अन्य की सात्विक मूर्ति-पूजा में अधर्म कहें ? क्योंकि पुद्गल द्रव्य तो सबके लिये समान है। समीक्षा → ज्ञानसुंदरजी अपने घर की बात नहीं कर रहे, शास्त्र ही कह रहे है शास्त्रों में बतायी शाश्वत जिनप्रतिमा से मूर्तिपूजा अनादि सिद्ध होती ही है। जैसे जैन दर्शन अनादि है वैसे जैनेतर दर्शन भी अनादि ही है क्योंकि मिथ्यात्व अनादि है ही, उनकी मूर्तिपूजा भी अनादि ही है। उसमें आपत्ति है ही नहीं, केवल धर्म किसमें है वह परीक्षा का विषय है। __ (३-४) कर्म बन्ध भी पुद्गल द्रव्य ही है, जो कि जैन दृष्टि से हेय वस्तु है, सुंदरजी के सिद्धांत से यह भी उपादेय होकर पूजनीय होना चाहिए ? धन, धान्य स्त्री, परिवार, वस्त्र आभूषण, जूते, तलवार बन्दूक आदि पुद्गलों को भी पूजना चाहिए ? समीक्षा -> पुद्गल द्रव्य की समानता से सब समान नहीं होता, एक जीव केवलज्ञानी है तो जीवत्व समान होने पर भी दूसरे सब जीव केवलज्ञानी नही हो सकते, एक जीव सम्यक्त्वी होने से सभी सम्यक्त्वी नही हो सकते, एक जीव गुरु है तो सभी गुरु नही होते यह तो छोटा बालक भी जानता ही है। भले चाहे धन-धान्य-स्त्री-परिवार आदि पुद्गल पूजनीय न हों, फिर भी उत्तम समझदार के लिए ज्ञान के पुस्तक वंदनीय - पूजनीय है ही । और माता-पिता-गुरु के फोटो भी वंदनीय है ही। (५) पुद्गल के अनादि होने से ही मूर्ति-पूजा भी अनादि और उपादेय है तो फिर पुद्गलों से ही पुद्गल की पूजा करना कैसे उचित कहा जा सकता है ? पूजने योग्य मूर्ति भी पुद्गल और उसकी पूजा की सामग्री अर्थात् पुष्प, फल, धूप, चावल, केशर, चन्दन और पैसा आदि भी पुद्गल, तो पुद्गलों से पुद्गलों की पूजा करना क्या बुद्धिमत्ता का कार्य है ? पौद्गलिकपन तो सब में है, फिर एक पूज्य और दूसरे उसकी पूजा की सामग्री । यह कल्पना क्यों ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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