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________________ ६२ जैनागम सिद्ध मूर्तिपूजा समाज जड पूजक या व्यक्ति पूजकं नहीं, वरन् गुण पूजक ही है । समीक्षा → समझदार इंद्रादि देव जन्मोत्सव करके इंद्रियविषय पोषण व जलादि की भयंकर हिंसा क्यों करते ? आपके हिसाब से तो मिथ्यात्व करणी है । इन्द्र जैसे सम्यग्दृष्टि, परमविवेकी आत्मा निष्फल मिथ्यात्व के कार्य तो करेंगे ही नहीं, जन्मोत्सव की कहां आवश्यकता थी ? इन्द्र घोषित कर देते की "जो तीर्थंकर प्रभु संसार का कल्याण कर इसी जन्म में मोक्ष पधारेंगे उनका जन्म हुआ है'' सामर्थ्यशाली इन्द्र आकाशवाणी से यह कर सकते थे, इससे बिना हिंसा आपका माना कार्य हो जाता । परमविवेकी इंद्रादिदेव च्यवन में नमुत्थुणं से वंदन क्यों करते हैं ? जन्म में भी सेवाभक्ति-वंदनादि क्यों ? गुण ही पूजनीय है न ? उसी प्रकार निर्वाण के बाद शरीर का विलेपनादि पूजन क्यों ? वहाँ तो स्पष्टरुप से जड शरीर ही है। कदाग्रह त्यागकर इन सब बातों पर शांति से विचार करे तो मध्यस्थ तत्त्वपिपासु को सही शास्त्रीय मार्ग पर श्रद्धा अवश्य होगी । इस विषय में अग्रिम पृष्ठों में भी चर्चा की जाएगी। ' __पृ. ७. → यदि व्यक्ति पूजा या जड़ शरीर की पूजा ही मुख्य होती, तो तीर्थंकर के गृहस्थावस्था में रहते हुए या निर्वाण के पश्चात् उनका शव भी वन्दनीय, पूजनीय माना जाता और मूर्ति के स्थान में वह शव ही मन्दिरो में सुरक्षित रखा जाता । जैसे की कई देशों मे मसाले भरकर शव रखे जाते हैं । आज भी संसार में अनेक धर्मों के धर्म गुरुओंनेताओं के देहोत्सर्ग पश्चात् उनके शरीर को अपनी अपनी मान्यतानुसार जला दिया जाता, अथवा भूमि में गाड़ दिया जाता, या पानी में बहा दिया जाता है । इससे भी यही सिद्ध होता है कि यदि व्यक्ति की मूर्ति (आकृति) पूजना ही धर्म होता तो उनके शरीर को जिसमें कि रहकर वह पूज्य हुए थे, क्यों नष्ट किया जाता ? पाषाण की मूर्ति से तो शव ठीक ही है । क्योंकि पहले उसमें गुण विद्यमान थे । समीक्षा → ऐसे इसका उत्तर निवेदन के समाधान में पीछे दे दिया है। विशेष इस प्रकार - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004077
Book TitleJainagam Siddh Murtipuja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year2014
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size10 MB
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